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Post: वाल्मीकिनगर संसदीय चुनाव में जदयू और आरजेडी के बीच सीधी टक्कर

वाल्मीकिनगर संसदीय चुनाव में जदयू और आरजेडी के बीच सीधी टक्कर

जिला ब्यूरो नसीम खान “क्या” की रिपोर्ट :

परिसीमन के बाद समीकरण बदला

थारू आदिवासी और उरांव निर्णायक भूमिका में

न्यूज़ डेस्क, बगहा पुलिस जिला 

नसीम खान “क्या”

– अमिट लेख

बगहा, (ब्यूरो डेस्क)। 2024 लोकसभा चुनाव के छठे चरण में बिहार के 01 वाल्मीकिनगर संसदीय सीट पर 25 मई को मतदान होना है। जिसके लिए यहाँ कुल 10 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं, इनमें जदयू से निवर्तमान सांसद सुनील कुमार औऱ आरजेडी प्रत्याशी दीपक यादव के बीच सीधी टक्कर है, जबकि कांग्रेस से 2020 उप चुनाव में उम्मीदवार रहें उप विजेता प्रवेश मिश्रा बागी होकर निर्दलीय चुनावी मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहें हैं। भौगोलिक दृष्टि से बगहा जो 2009 में परिसिमन बदलने के बाद वाल्मीकिनगर के नाम से सामान्य सीट बन गया इसका क्षेत्र काफ़ी व्यापक है। नेपाल औऱ उत्तर प्रदेश से सटा हुआ इसका सीमा वाल्मिकीनगर से लौरिया व सिकटा नरकटियागंज तक बड़े पैमाने पर फ़ैला हुआ विभिन्न जाति समुदाय में बंटा हुआ है। वाल्मीकिनगर की जनसंख्या लगभग 38 लाख 40 हज़ार के करीब है। वाल्मीकिनगर संसदीय क्षेत्र में 1828 बूथ हैं। यहाँ कुल मतदाता 18 लाख 15 हज़ार 73 हैं। जिसमें पुरूष वोटरों की संख्या 9 लाख 60 हज़ार 632 है जबकि आधी आबादी में महिला वोटरों की संख्या 8 लाख 54 हज़ार 370 है तो वहीं थर्ड जेंडर में 71 मतदाता हैं। जातिय समीकरण में यहां अनुसूचित जनजाति में थारू आदिवासी औऱ उरांव वोटर निर्णायक भूमिका में हैं। जिनकी जनसंख्या 2 लाख 70 हज़ार के आसपास है तो वहीं ब्राह्मण जाति की भी बहुलता है जो दो लाख के क़रीब हैं वहीं यादव वोटरों की भी संख्या तकरीबन ढाई लाख के क़रीब है जबकि मुस्लिम वोटरों की संख्या तीन लाख के आसपास है। दलित और महादलित मिलाकर क़रीब डेढ़ लाख जबकि वैश्य मतदाता भी डेढ़ लाख के आस पास हैं । पिछड़ी व अतिपिछड़े जातियों के वोटर भी डेढ़ लाख के करीब हैं। जातिगत औऱ सामाजिक समीकरण यहां चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आ रहे हैं लिहाजा यह सीट लम्बे समय से एनडीए के लिए सुरक्षित सीट बन गई है। वाल्मीकिनगर संसदीय क्षेत्र में चुनावी मुद्दों पर नज़र डालें तो सबसे पहले बगहा को राजस्व ज़िला बनाने की मांग वर्षों से चली आ रही है। हालांकि सीएम नितीश कुमार नें अब इसे ज़िला बनाने का भरोसा दिलाया है। भौगोलिक दृष्टि से अतिपिछड़े इलाके में सुमार वाल्मिकीनगर नेपाल और उत्तर प्रदेश से सटा हुआ क़रीब एक सौ किलोमीटर में फैला हुआ बड़ा इलाक़ा है। हालांकि बगहा को वर्ष 1972 में अनुमण्डल मुख्यालय बनाया गया तो वहीं वर्ष 1996 में इसे पुलिस ज़िला का दर्ज़ा मिला। 7 प्रखंड व क़रीब दो दर्ज़न थानों को मिलाकर बगहा से ज़िला मुख्यालय बेतिया की दूरी 70 किलोमीटर है जो आम लोगों के लिए सरल व सुगम नहीं है। अब तक के चुनावों में दावे औऱ वादे कई बार किये गए लेकिन न तो एनडीए गठबंधन औऱ ना ही महागठबंधन की सरकार में बगहा का कायाकल्प हुआ। परंपरागत रूप से वाल्मीकिनगर लोकसभा सीट आज़ादी के बाद कांग्रेस व गठबंधन के खाते में वर्ष 1988 तक रही , लेकिन वर्ष 1989 से यहां जनता दल, समता पार्टी व अभी जेडीयू का कब्ज़ा बरकरार है । 1989 से समता पार्टी के दिवंगत महेंद्र बैठा 2004 तक चुनाव जीतते रहे जबकि 2004 में जेडीयू के कैलाश बैठा बगहा के सांसद बने तो वहीं परिसीमन में बदलाव के कारण 01 बगहा संसदीय क्षेत्र 01 वाल्मीकिनगर के रूप में परिवर्तित हुआ लिहाजा 2009 में जेडीयू के वैधनाथ प्रसाद महतो ने बड़ी जीत हासिल किया। फ़िर 2014 में मोदी लहर में वाल्मीकिनगर सीट पर एनडीए के बीजेपी उम्मीदवार सतिश चन्द्र दुबे चुनाव जीते। जबकि 2019 में एनडीए के खाते में यह सीट पुनः जेडीयू को गई तब भी वैधनाथ प्रसाद महतो ने भारी मतों से रिकॉर्ड जीत हासिल किया। लेकिन उनके असामयिक निधन के बाद यहां 2020 विधानसभा चुनाव के साथ उप चुनाव हुए जिसमें भी जेडीयू ने दिवंगत सांसद वैधनाथ प्रसाद के पुत्र सुनील कुमार को उम्मीदवार बनाया । जेडीयू के सुनील कुमार ने भी जातिगत समीकरण को ध्वस्त कर पुनः पिता व पार्टी की पुस्तैनी सीट पर जीत हासिल कर विरासत कायम रखी। ऐसे में कहा जा सकता है कि 01 वाल्मिकीनगर लोकसभा सीट पर परंपरागत रूप से एनडीए का ही दबदबा औऱ बोलबाला है और फ़िलहाल जेडीयू यहां काबिज़ है।सुनील कुमार जेडीयू से वाल्मीकिनगर के निवर्तमान सांसद हैं लेकिन महज़ 22 हज़ार वोटों से उप चुनाव में महागठबंधन के कांग्रेस प्रत्याशी प्रवेश मिश्रा की हार हुई। महागठबंधन में कांग्रेस यहां 2009 से लगातार दावेदारी औऱ उम्मीदवारी पेश करती रही लेकिन अबकी बार फ़िर जदयू नें सुनील कुमार पर भरोसा जताया है तो आरजेडी नें उद्योगपति दीपक यादव को उम्मीदवार बनाया है। इधर इन दोनों के अलावे 8 अन्य उम्मीदवार ताल ठोंक रहें हैं जिनमें असम के कोकराझार से दो बार निर्दलीय सांसद रहें नबा कुमार सरानिया उर्फ़ हिरा भाई नॉमिनेशन रद्द होने के बाद यहाँ के आदिवासी वोटरों के बदौलत अपना भाग्य आजमा रहें हैं तो कांग्रेस से बगावत क़र प्रवेश मिश्रा निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं वहीं बीजेपी में जमींन तलाश रहें दिनेश अग्रवाल बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़ रहें हैं। ये सभी आठ निर्दलीय उम्मीदवार एनडीए औऱ इंडिया महागठबंधन के वोटों में सेंधमारी की तैयारी में हैं लेकिन दिलचस्प बात यह है की यहाँ सीधी लड़ाई जदयू औऱ आरजेडी के बीच दिख रहीं है।

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