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बंजरिया प्रखंड का सिसवा पूर्वी पंचायत किसी शहर से कम नहीं

बंजरिया प्रखंड का सिसवा पूर्वी पंचायत शहर से कम नहीं है

दिवाकर पाण्डेय

–  अमिट लेख
मोतिहारी, (जिला न्यूज़ ब्यूरो)। बंजरिया प्रखंड का सिसवा पूर्वी पंचायत शहर से कम नहीं है। 12वीं तक की पढ़ाई से लेकर प्राथमिक इलाज, सरकारी योजनाओं के लाभ के आवेदन लेने के साथ ही अन्य जरूरी सुविधाएं यहाँ  उपलब्ध हैं। पक्की सड़क और रात में जगमगाती सोलर स्ट्रीट लाइट भी यहां के विकास की कहानी कहती है। जल संरक्षण की दिशा में बड़ा काम हुआ है। इससे पेयजल से लेकर सिंचाई तक के लिए ग्रामीणों को परेशान नहीं होना पड़ता। यही कारण है कि बिहार के पूर्वी चंपारण जिले के बाढ़ग्रस्त बंजरिया प्रखंड की सिसवा पूर्वी पंचायत के विकास की गूंज राष्ट्रीय स्तर तक पहुंची।बीते मार्च में नई दिल्ली में आयोजित स्वच्छ सुजल शक्ति सम्मान कार्यक्रम में मुखिया ने उपस्थित होकर यहां के कार्यों की जानकारी दी। करीब 30 हजार की आबादी वाली सिसवा पूर्वी पंचायत की वर्ष 2016 में स्नातक पास हाउस वाइफ तान्या परवीन पहली बार मुखिया बनीं तो सड़कों पर गंदगी फैली रहती थी। सड़कें टूटी-फूटी थीं। जलनिकासी की सुविधा नहीं होने के चलते सड़क पर गंदा पानी बहता था। अपने कुशल प्रबंधन के चलते उन्होंने पंचायत को विकास की पटरी पर लाने का कार्य शुरू किया। सड़कों के निर्माण के साथ जल निकासी के लिए नालियां बनवाईं। सभी नालियां ढकी हैं। लोगों के घरों से निकलने वाले पानी इसके जरिये सोख्ते में जाता है। वहां फिल्टर लगा है। पानी साफ होकर भूमि के अंदर जाता है। इससे भूजल रिचार्ज होता है। पंचायत के 16 वार्डों में 20 सामुदायिक सोख्ते बने हैं। एक के निर्माण पर 30 हजार रुपये खर्च हुए हैं। कुओं के जीर्णोद्धार के साथ तालाब का निर्माण किया गया है। इसके चलते गर्मी में पेयजल व सिंचाई के लिए ग्रामीणों को परेशानी नहीं होती। पंचायत को ओडीएफ (खुले में शौच से मुक्त) बनाने के लिए घर-घर शौचालय के निर्माण के साथ उसका उपयोग होता है। हर घर नल का जल योजना के तहत स्वच्छ जल की आपूर्ति होती है। पंचायत में छोटी-छोटी 19 जलमीनारें बनाई गई हैं। लोगों के घरों में स्वच्छ जल पहुंचे इसके लिए निगरानी की जाती है। पंचायत में एक उच्च विद्यालय, पांच मध्य व दो प्राथमिक विद्यालय है। इलाज के लिए एपीएचसी है। यहां की व्यवस्था भी दुरुस्त है। वार्ड स्तर पर सफाई के लिए खास इंतजाम किए गए हैं। इसके लिए कमेटी बनी है। वार्डों में एक दिन के अंतराल पर सड़कों पर झाड़ू लगाई जाती है। घर-घर से सूखे व गीले कचरे का अलग-अलग उठाव होता है। इसके लिए एक ई-रिक्शा व हर वार्ड में रिक्शा है। कचरा छह महीने पहले पंचायत में बनी कचरा प्रबंधन इकाई में पहुंचता है। गीले कचरे से जैविक खाद बनाई जाती है। पहली बार करीब 12 क्विंटल खाद तैयार हुई थी, जिसे किसानों के बीच बांट दिया गया था। अब तक 10 हजार रुपये की खाद बेची जा चुकी है। सूखे कचरे को छांटकर बेचने की भी व्यवस्था है। कचरा प्रबंधन से 21 लोगों को रोजगार भी मिला है। इन्हें महीने में 3000 से लेकर 7500 रुपये तक मिलते हैं।हरियाली के लिए चार हजार पौधे लगाए गए हैं। पोखर किनारे ओपन जिम में पहुंच लोग अपनी सेहत सुधारते हैं। पंचायत भवन में सभी सुविधाएं हैं। यहां लोक सेवाओं का अधिकार काउंटर पर कर्मी तैनात रहते हैं। मुखिया प्रतिदिन सुबह छह बजे से 11 बजे तक व शाम चार बजे आठ बजे तक पंचायत भवन में बैठकर ग्रामीणों की समस्याओं का समाधान करती हैं। बिजली कट जाने के बाद भी रात में गांव की सड़कें व गलियां रोशन रहती हैं। इसके लिए छह माह पूर्व पंचायत में 170 सोलर स्ट्रीट लाइट लगाई गईं। इस मद में 31 लाख रुपये खर्च हुए हैं। ग्रामीण अब्दुल हफीज, चंदेश्वर राय और पंकज साह का कहना है कि पहले सड़कों पर गंदा पानी बहता रहता था। सफाई की व्यवस्था नहीं थी। अब तो पंचायत का नक्शा ही बदल गया है। मुखिया का कहना है कि पंचायत में सबकी सहमति से विकास कार्य किए जाते हैं। उनके काम के चलते ही लोगों ने 2021 में दोबारा चुनकर मुखिया बनाया। वह कहती हैं कि ससुर पंचायत के 2005 तक मुखिया रहे। उनके निधन के बाद पंचायत आरक्षित हो गई। 2016 में आरक्षण हटने के बाद चुनाव लड़ी और जीत हासिल की।

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