



आलेख : बादल सरोज
प्रस्तुति : अमिट लेख
मजमून के मुकाबले जूते के चलने को अपने शेर में “बूट डासन ने बनाया, मैंने एक मजमून लिखा / मेरा मजमून रह गया डासन का जूता चल गया” में दर्ज करने वाले, पेशे से वकील रहे शायर अकबर इलाहाबादी को भी अंदाजा नहीं रहा होगा कि एक दिन उनका कहा मुल्क की सबसे बड़ी अदालत में अमल में लाया जाएगा। मगर ऐसा हो गया, संविधान का मजमून धरा रह जाएगा और डासन की जगह सनातन का जूता चल जाएगा।
‘सनातन का अपमान नहीं सहा जाएगा’ कहते हुए एक वकील ने ही आला अदालत के सबसे आला जज पर जूता उछाल दिया। वह कोई सरफिरा नहीं था, जैसा कि उसने बाद में कहा, वह अपने किये के कारणों के बारे में पूरी तरह आश्वस्त और स्पष्ट सनातनी था। यह सचमुच में एक अत्यत गंभीर और चितित करने वाली बात है, किन्तु इसे सदर्भ से काटकर अलग-थलग करके देखने से इसकी जड़ तक नहीं पहुंचा जा सकता। यह जिस निरंतरता में है, उससे जोड़कर ही इसकी समग्रता में ही इसे समझा जा सकता है। इसलिए शुरुआत पिछले सप्ताह उजागर हुई खबरों से : ऐसी ख़बरें अनेक हैं, मगर यहाँ बानगी के लिए इनमे से सिर्फ चार पर नजर डालना काफी होगा-
रोहडू, हिमाचल प्रदेश :
एक 12 साल का दलित बच्चा सिकंदर एक दुकान से कुछ खाने की चीज खरीदने जाता है। दुकान में कोई व्यक्ति नहीं था, दुकान खाली थी। वह दुकानदार की तलाश में उसके घर के अंदर जाकर सामान मांगता है। दुकान मालकिन उस 12 साल के दलित बच्चे को अपने घर में देखकर गुस्से में फट पड़ती है, उसे दुत्कार कर भगा देती है। उसके बाद उस बच्चे के घर एक संदेश भेजा जाता है, तुम्हारे लड़के ने हमारे घर में घुसने का पाप किया है। इसका पश्चाताप करने के लिए एक बकरी भेंट करो। दलित बच्चे के मां-बाप बकरी देने से मना कर देते हैं। दुकान मालकिन उस बच्चे को ही बकरी बांधने की जगह बाँध कर बकरी न आने तक बंधक बना लेती है, उसे पीटा भी जाता है। जैसे-तैसे भागकर सिकंदर बाहर निकलता है और इस अपमान से आहत होकर आत्महत्या कर लेता है।
फ़तेहगंज, उत्तरप्रदेश :
फतेहगंज थाना क्षेत्र के जबरापुर गांव में दो दलित बुज़ुर्गों, भगत वर्मा (60) और कल्लू श्रीवास (70), पर कथित ऊंची जाति के लोगों का हमला होता है। इन बुजुर्गो का कसूर यह है कि अपने खेतों में काम करते-करते वे उधर से गुजरने वाले इन ‘बड़े लोगों’ को देख नहीं पाए और उनसे “राम-राम” नहीं कहा। हमलावर उन्हें लाठी-डंडों से पीटते है, चाकू से गोदते हैं, जातिसूचक गालियां देते है और जाते-जाते दक्षिणा के रूप में इनसे 500 रुपये छीनकर ले जाते है।
रायबरेली, उत्तरप्रदेश :
30 साल के एक दलित हरिओम वाल्मीकि की पीट-पीटकर कर हत्या कर दी जाती है और उसकी लाश ऊंचाहार गांव में रेलवे ट्रैक के पास फेंक दी जाती है। घटना सोशल मीडिया पर उस व्यक्ति की बेरहमी से पिटाई का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद सामने आती है।

हरिओम फतेहपुर जिले के तारावती इलाके के पुरवा गांव के रहने वाले थे। यह अपनी पत्नी से मिलने जा रहे थे। मानसिक रूप से अस्वस्थ थे, इसलिए सही तरीके से बात नहीं कर पाते थे। ऐसे निरीह व्यक्ति को ड्रोन से चोरी करने लायक मानकर पुलिस की मौजूदगी में तब तक पीटा गया, जब तक उसकी मौत नहीं हो गयी। ख़बरों के मुताबिक़ पिटाई के दौरान बेहोशी की स्थिति में जब हरीओम ने राहुल गांधी का नाम लिया तो हमलावरों ने कहा कि ‘हम भी बाबा – योगी आदित्यनाथ के लोग हैं।’
महिसागर, गुजरात :
गांधीनगर के सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज की चौथे साल की छात्रा दलित युवती रिंकू वानकर वीरपुर तालुका के अपने कस्बे में अपनी एक दोस्त के साथ गरबा कार्यक्रम में शामिल होने के लिए जाती है। उसे कथित रूप से खुद को ऊंचा मानने वाली युवतियां जातिसूचक गालियां देती हैं। “ये लोग हमारे बराबर नहीं हैं और हमारे साथ गरबा नहीं खेल सकते,” कहते हुए उसके बाल पकड़कर घसीटते हुए गरबा स्थल से बाहर निकाल देती हैं। 6 अक्टूबर को सर्वोच्च न्यायालय में उसके मुख्य न्ययाधीश बी आर गवई की ओर उछाला गया जूता इन्हीं घटनाओं की निरंतरता में देखा जाना चाहिए था। पहले की खबरों में इसे जूता फेंकने वाले वकील की धार्मिक भावनाओं से जुड़ा और स्वयं ईश्वर के कहने पर किया गया काम बताया गया। कहा गया है कि हमलावर मध्य प्रदेश के खजुराहो के एक धरोहर स्थल में भगवान विष्णु की जीर्ण-शीर्ण मूर्ति की पुनर्स्थापना की मांग करने वाली याचिका को ‘पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन’ बताते हुए जस्टिस गवई ने इसे पुरातत्व विभाग और राष्ट्रीय धरोहरों के संरक्षण से जुड़े नियमों का मामला मानते हुए खारिज करते समय कही गयी बात से दुखी था। सुनवाई के दौरान चलते-चलाते जस्टिस गवई ने टिप्पणी की थी कि ‘अगर आप कह रहे हैं कि आप भगवान विष्णु के प्रबल भक्त हैं, तो आप उन्ही की प्रार्थना और ध्यान क्यों नही करते।’ खुद को धर्मप्रेमी और विष्णु अनुरागी भक्त बताने वाले जिस वकील को सीजेआई की यह बात ‘सनातन का अपमान’ लगी, उसने पुराणों में लिखे विष्णु के किस्से पढ़े होंगे, रहीम का वह दोहा तो सुना ही होगा जिसमें वे ‘का रहीम हरि को घट्यो जो भृगु मारी लात’ की बात करते है। जाहिर है कि बंदे ने भृगु महाराज की लात और गवई की कही बात पर कम, उनकी जाति पर ज्यादा ध्यान दिया होगा। हालांकि बाद में दिए गए इस वकील के बयानों से यह बात भी सामने आई है कि मसला विष्णु भर का नहीं था : वह विष्णु के आदित्यनाथ और नुपुर शर्मा जैसे आधुनिक अवतारों की अवहेलना किये जाने के न्यायालयीन दुस्साहस से भी नाराज था। उसे इस बात पर आपत्ति थी कि जस्टिस गवई ने योगी (आदित्यनाथ) जी द्वारा की जा रही बुलडोजर कार्यवाही का विरोध करने की हिम्मत दिखाई। प्रसंग यह है कि इस महीने की शुरुआत में मॉरीशस में ‘सबसे बड़े लोकतंत्र में कानून का शासन’ विषय पर सर मौरिस रॉल्ट मेमोरियल लेक्चर 2025 में बोलते हुए जस्टिस बीआर गवई ने कहा था कि भारत की न्याय व्यवस्था कानून के शासन से निर्देशित होती है, न कि ‘बुलडोजर के शासन’ से। ऐसा कहते हुए गवई ने अपने ही फैसले का हवाला दिया था, जिसमें ‘बुलडोजर न्याय’ की निंदा की गई थी। इस वकील की ‘धार्मिक भावनाएं’ सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नुपुर शर्मा के बयानों को “माहौल बिगाड़ने वाला” बताने और हल्द्वानी में रेलवे की ज़मीन पर एक ख़ास समुदाय द्वारा किये गए अतिक्रमण को हटाने की कोशिश पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन साल पहले रोक लगा देने से भी आहत थीं। उसे जल्लीकट्टू और दही हांडी प्रकरणों में सुप्रीम कोर्ट के रुख से भी शिकायत है और उसका मानना है ‘जब भी हमारे सनातन धर्म से जुड़ा कोई मुद्दा आता है, तो यह सुप्रीम कोर्ट उस पर कोई न कोई आदेश जारी कर देता है। उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए।’ यह सब उस वक़्त उसी सनातन के नाम पर हो रहा था – हरीओम वाल्मीकि की लाश तो ठीक उसी दिन 2 अक्टूबर को बरामद हो रही थी – जब राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ के 100वें वर्ष के दशहरा आयोजन में नागपुर में बोलते हुए सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत सनातन की दुहाई देते हुए दावा कर रहे थे कि : “हमारी सनातन, आध्यात्मिक, समग्र व एकात्म दृष्टि में मनुष्य के भौतिक विकास के साथ-साथ मन, बुद्धि तथा आध्यात्मिकता का विकास, व्यक्ति के साथ-साथ मानव समूह व सृष्टि का विकास, मनुष्य की आवश्यकताओं-इच्छाओं के अनुरूप आर्थिक स्थिति के साथ-साथ ही, उसके समूह और सृष्टि को लेकर कर्तव्य बुद्धि का तथा सब में अपनेपन के साक्षात्कार को अनुभव करने के स्वभाव का विकास करने की शक्ति है, क्योंकि हमारे पास सबको जोड़ने वाले तत्त्व का साक्षात्कार है।“ (कृपया ध्यान दें, यह हिंदी उन्हीं के द्वारा बोली गयी हिंदी है।) यह भी बता रहे थे कि “हिंदू समाज इस देश के लिए उत्तरदायी समाज है, कि हिंदू समाज सर्व-समावेशी है। ऊपर के अनेकविध नाम और रूपों को देखकर, अपने को अलग मानकर, मनुष्यों में बंटवारा व अलगाव खड़ा करने वाली ‘हम और वे’ इस मानसिकता से मुक्त है और मुक्त रहेगा।“ वह कितना समावेशी है और कितना मन, बुद्धि का विकास करता है, इसके प्रमाण देते हुए वही सनातन रोहडू से फतेहगंज, रायबरेली, महिसार की वारदातों को अंजाम दे रहा था। देश के संविधान के सबसे बड़े केंद्र सर्वोच्च न्यायालय में जूता उछाल रहा था। ठीक यही वजह है कि इन घटनाओं को अलग-अलग नहीं, निरंतरता में – सनातन के अमल की निरंतरता मे…