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ज्ञान-विज्ञान कार्यशाला सह बीएड कॉलेज का किया गया उदघाटन

शहर के लक्ष्मी नारायण दुबे महाविधालय में नवनिर्मित बीएड भवन का उद्घाटन किया गया

दिवाकर पाण्डेय

– अमिट लेख
मोतिहारी, (जिला न्यूज़ ब्यूरो)। शहर के लक्ष्मी नारायण दुबे महाविधालय में नवनिर्मित बीएड भवन का उद्घाटन किया गया। इस मौके पर ज्ञान-विज्ञान कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन बीआरएबीयू के कुलपति प्रो.शैलेंद्र कुमार चतुर्वेदी, बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग के अध्यक्ष प्रो. राजवर्धन आजाद, सदस्य प्रो. उपेंद्र नाथ वर्मा, प्रो. (डॉ.) अनिल कुमार सिन्हा, सुशील कुमार, उमेश चंद्र विश्वास, कुलसचिव डॉ. संजय कुमार सिंह, कुलानुशासक प्रो. अजित कुमार, छात्र कल्याण संकायाध्यक्ष प्रो. अभय कुमार सिंह एवं प्राचार्य प्रो. अरुण कुमार ने संयुक्त रूप से किया। बीएड भवन के उद्घाटन के बाद कार्यशाला का शुभारंभ किया गया। जिसकी अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो. शैलेंद्र कुमार चतुर्वेदी ने कहा गुरू का गुरुत्वाकर्षण घटने लगा है। ऐसे मे गुरू देवो भव: की पुन:स्थापना के लिए शिक्षक, विद्यार्थी व समाज को पुनःचिंतन करने की आवश्यकता है। उन्होंने गुरू-शिष्य के संबंध में मीडिया की सकारात्मक व नकारात्मक भूमिका पर भी प्रकाश डाला।प्रो. राजवर्धन आजाद ने शिक्षक, शिक्षा और विद्यार्थी विषय पर विद्यार्थियों के पांच सुलक्षणों अल्पाहारी, कागचेष्ठा, वकोध्यानम् गृहत्यागे व स्वाण निद्रा को रेखांकित किया। प्रो. उपेंद्र नाथ वर्मा ने ज्ञान विज्ञान कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि ई-कचरे के निस्तारण के तीन तरीके हैं – जलाना, दफ़नाना व पुन:चक्रण, ई-कचरे को जलाने एवं दफनाने से मानव जीवन एवं पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचता है। इससे मनुष्य का एंडोक्राइन ग्रैंड प्रभावित होता है। ई-कचरों में पाए जाने वाले लेड, मर्करी, क्रोमियम व कोबाल्ट जैसे तत्वों से भी मानव जीवन को खतरा है। ई-कचरों के निस्तारण के लिए आज प्रबंधन का अभाव है। इसके निराकरण के लिए न्यूनतम इलेक्ट्रॉनिक गजट के प्रयोग पर जोर दिया।उन्होने कहा कि आज की पीढ़ी में इसकी उपयोगिता व ई-कचरे निस्तारण की चेतना उत्पन्न नहीं होती है तो भावी पीढ़ी का जीवन खतरे में होगा। विश्वविद्यालय सेवा आयोग उमेश चंद्र विश्वास ने शिक्षा में अनुशासन एवं सदाचार पर महान विचारक प्लेटो का संदर्भ देते हुए बताया कि सद्गुण ही ज्ञान है। उन्होंने कहा कि व्यक्तियों में अंत:प्रेरणा से उत्पन्न आंतरिक अनुशासन द्वारा ही नैतिकता को पल्लवित व पुष्पित किया जा सकता है। आज के शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में शिक्षा एवं आचार को शामिल कर विस्तारपूर्वक व समग्र विकास को संभव बनाया जा सकता है। प्रो.(डॉ.) अनिल कुमार सिन्हा ने कहा कि एक व्यक्ति सड़क के कचरे को साफ करता है और दूसरा व्यक्ति घर के कचरे को साफ कर सड़क पर फेंकता है। मनुष्य की इन चेतनाओं पर ध्यानाकर्षित कर पर्यावरण को बचाने का संकल्प लेना होगा। उन्होंने चंपारण की सरिस्वा नदी व भूगर्भीय जल स्तर का जिक्र करते हुए पर्यावरण और शिक्षा के अंत:संबंधों को रेखांकित किया। कार्यक्रम के अंत में कुलपति प्रो. शैलेंद्र कुमार चतुर्वेदी ने विभिन्न विधाओं में जिला व राज्य स्तर के विजेता प्रतिभागियों व शिक्षको को प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया।कार्यक्रम के दौरान अतिथियों ने बीएड विभागाध्यक्ष डॉ परमानंद त्रिपाठी द्वारा लिखित पुस्तक का विमोचन भी किया।

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