वीरपुर अनुमंडल अंतर्गत बसन्तपुर प्रखंड के बलभद्रपुर ग्राम स्थित मां दुर्गा मंदिर हिन्दू एवं मुस्लिम समुदाय के बीच मधुर संबंध का एक मात्र परिचायक मंदिर है
न्यूज़ डेस्क, सुपौल ब्यूरो
मिथिलेश कुमार झा, अनुमंडल ब्यूरो
– अमिट लेख
वीरपुर, (सुपौल)। वीरपुर अनुमंडल अंतर्गत बसन्तपुर प्रखंड के बलभद्रपुर ग्राम स्थित मां दुर्गा मंदिर हिन्दू एवं मुस्लिम समुदाय के बीच मधुर संबंध का एक मात्र परिचायक मंदिर है। इसे लोग आज शक्ति पीठ भी मानते हैं। उक्त मंदिर लगभग 100 वर्ष पुराना है।
जहां प्रत्येक वर्ष दोनों समुदाय के लोग आपस में प्रेम एवं प्रीति से सौहार्दपूर्ण वातावरण में मां शेरोवाली की पूजा अर्चना करते हैं। यह मंदिर समाज को एक सूत्र में बांधने में काफी कारगर सिद्ध हो रहा है। ऐसा उदाहरण देखने को कहीं कहीं मिलता है। आपसी व धार्मिक भाईचारा का एक मिशाल को यह मंदिर दर्शा रहा है। यह जानकार हैरानी होगी कि यहां जो सच्चे मन से माता रानी की पूजा करते हैं । माता रानी उनकी सभी मनोकामनाएं को पूरी करती हैं। शारदीय नवरात्र के मौके पर यहां विशेष रूप से पूजा -अर्चना की जाती है। नवमी ने दिन मां के पास लोग फूलहास लगाते हैं। जिसके लिए लोग एक वर्ष पूर्व से ही नंबर लगाते है। आसपास के क्षेत्रों के अलावे कई राज्यों के लोग यथा दिल्ली, पश्चिम बंगाल सहित पड़ोसी राष्ट्र नेपाल के लोग भी मंदिर पहुंच कर माता की पूजा अर्चना करते हैं । वे अपने व परिजनों के लिए मंगल की कामना माता रानी से करते हैं। जिससे इनकी मनोकामना की सिद्धि भी होती है। स्थानीय ग्रामीण रमेश मेहता, रमेश बरियैत बताते है कि जब यह क्षेत्र राजा गढ़बनैली के अधीन था। उनकी कचहरी हृदयनगर पंचायत के सीतापुर गांव में थी। राजा के तहसीलदार साधु बाबा को भगवती ने केला के पेड़ के नीचे पिंड होने का स्वप्न दिया था। साथ ही उक्त पिंड को सीतापुर में एक खेत में स्थापित करने की बात कहीं थी। तदुपरांत यहां माता के पिंड की स्थापना की गई । जिसे बाद में कोशी नदी के कटाव के कारण पिंड को रानीगंज पूर्वी कोशी तटबंध के अंदर गांव में स्थापित किया गया। जहां देवी ने पुनः ग्रामीणों को स्वप्न दिया कि उन्हें ऐसी जगह स्थापित किया जाय । जिस गांव के नाम के अंत मे पुर लगा हो। तब एक मत होकर ग्रामीणों ने करनामा गांव का नाम बदल कर कर्णपुर कर दिया। बाद में कोशी नदी की कटाव की वजह से पिंड का कई बार स्थान परिवर्तन किया गया । मंदिर कमिटी के पूर्व अध्यक्ष सूर्य नारायण मेहता एवं स्थानीय शिक्षक आदित्य कुमार झा बताते है कि गढ़बनैली के राजा कृत्यानन्द सिंह के छः पुत्रों में सबसे बड़े पुत्र श्यामानन्द सिंह को देवी ने स्वप्न देकर उन्हें बलभद्रपुर में स्थापित करने का आदेश दिया था। इसके बाद तत्कालीन तहसीलदार जो मूलतः बंगाली थे। उनको 24 घन्टे के अंदर देवी की पिंड की स्थापना करने को कहा गया। इसी आदेश के बाद गंगा राम मरर, जानकी प्रसाद चौधरी, मो.मतालिम, फते हाजी, मो.इदरिश, कुर्बान हाजी, अब्दुल गणि जैसे हिन्दू और मुस्लिम समाज के लोगो की संयुक्त पहल पर पिंड को 1932 में हरिपुर-घूरना से बलभद्रपुर लाने का प्रयास प्रारंभ किया गया।
जहां शुरुआत में स्थानीय निवासियों ने इसका विरोध किया था। लेकिन बाद में दोनों गांवो के प्रबुद्ध जनों की पहल पर पिंड को हाथी-घोड़ा, लाव-लश्कर व गाजे- बाजे के साथ बलभद्रपुर लाया गया। बलभद्रपुर लाने के क्रम में हाथी जिस पर मां का पिंड था। वह आज जहां मंदिर है वहां आकर बैठ गया। जबतक पिंड नही उतारा गया तब तक हाथी खड़ा नही हुआ। मां के पिंड को उतारने के साथ ही हाथी खड़ा हो गया। तभी इसी जगह मंदिर को स्थापित कर दी गयी। लगभग सवा करोड़ की लागत से मंदिर का पुनर्निर्माण कार्य 2013 में प्रारंभ किया गया। जिसमे हिन्दू एवं मुस्लिम दोनों समुदाय के लोगो सहयोग दिया। जो काफी सराहनीय रहा है। मां दुर्गा मंदिर बलभद्रपुर के नाम से लगभग 2.5 बीघा जमीन भी खरीदी गई है। श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूरी होने पर गहना-जेवरात आदि चढ़ावा भी यहां करते है। बताया जा रहा है कि दशमी के रात्रि ही प्रतिमा प्रत्येक वर्ष विसर्जित कर दी जाती है। वर्तमान में कमिटी महेंद्र गोठिया की अध्यक्षता में उमेश चौधरी, रमेश चौधरी, पवन पौद्दार, राकेश गोइत, संतोष गोठिया, टिंकू गोठिया, नीरज गोठिया, पिंटू गोठिया, दिनेश बरियैत, जवाहर चौधरी, लाल मेहता, महानंद मेहता, राज किशोर चौधरी, सत्यनारायण मेहता आदि सक्रिय सदस्य की देख रेख में चल रहा है । लोगो ने बताया कि कि आजादी के बाद पंचायत के प्रथम मुखिया गंगा राम मंडल के प्रयास से यहां बलि प्रथा को बंद कर दिया गया। मुखिया प्रतिनिधि मो तोहिद कहते है कि यह मंदिर हिंदू एवं मुस्लिम एकता का प्रतीक है। मुस्लिम समाज के लोग भी यहाँ मन्नत मांगते है और पूरा होने पर चढ़ावा चढ़ाते हैं।