इंडो-नेपाल सीमा पर स्थित नरदेवी माता का मंदिर आस्था का केंद्र है। नवरात्रि के सातवें दिन कालरात्रि माता की पूजा होती है
नंदलाल पटेल
– अमिट लेख
वाल्मीकिनगर, (संवाददाता)। इंडो-नेपाल सीमा पर स्थित नरदेवी माता का मंदिर आस्था का केंद्र है। नवरात्रि के सातवें दिन कालरात्रि माता की पूजा होती है।आज के दिन माता का पट खुल जाता है। ऐसी मान्यता है कि कालरात्रि माता की पूजा करने से दुश्मनों का नाश होता है। पौराणिक कथा के अनुसार असुरों के राजा रक्तबीज का संहार करने के लिए दुर्गा माता ने कालरात्रि माता का रूप लिया था।जंगल में स्थित नरदेवी माता के मंदिर में आज से विशेष भीड़ की शुरुआत हुई। बताते चलें कि नवमी तिथि को यहां मेला लगेगा। नरदेवी माता मंदिर का इतिहास काफी पुराना है।बुंदेलखंड के राजा जासर के द्वय पुत्र आल्हा ऊदल ने इस मंदिर की स्थापना की थी। आल्हा ऊदल जैसे बलिष्ठ योद्धा के पास हाथी के जैसा बल था। ऐसी कहानी लोग बताते हैं। पहले यह मंदिर छोटे रूप में था। उसके बाद भक्तों के सौजन्य से यह मध्यम आकार का मंदिर लाल रंग का बनाया गया। पुनः यह मंदिर अभी अपनी भव्यता को बताता नजर आता है। जिन भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है वह नारियल फोड़ते हैं ,अगरबत्ती कपूर जलाते हैं। मनोकामना पूर्ण होने पर मंदिर परिसर में कथा पूजा अर्चना करते हैं । मंदिर इस तरह प्रसिद्ध है कि मुंडन संस्कार और शादी ब्याह भी इस मंदिर में किए जाते हैं। मनोकामना पूर्ण होने पर मंदिर परिसर में अष्टयाम और जगराता का कार्यक्रम भी होता रहता है। स्थानीय लोकप्रिय कलाकार डी आनंद ने विभिन्न भजनों, फिल्म, शूटिंग और डॉक्यूमेंट्री द्वारा नरदेवी माता मंदिर को महिमा की शुरुआती दौर में काफी प्रचारित प्रसारित किया था। नर देवी माता मंदिर से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं कही जाती है।
इसमें एक कथा के मुताबिक यहां नर की बलि दी जाती थी इसलिए इसका नाम नरदेवी पड़ा। आल्हा ऊदल के द्वारा स्थापित इस मंदिर में दोनों भाई बड़ी श्रद्धा से पूजा अर्चना करते थे, पूजा संपन्न होने के पश्चात वे स्वयं अपने हाथों तलवार से अपनी गर्दन काटकर माता के चरणों में अर्पित कर देते थे। माता की असीम अनुकंपा से पुनः आल्हा ऊदल की गर्दन जुड़ जाती थी। इस तरह और भी अन्य कई महिमा मंडित करने वाली कथाएं प्रचलित है। मंदिर के सामने अमृत कुआं है। जिसका जल पीने से तमाम तरह की बीमारियां दूर होती है। मंदिर परिसर में भैरव बाबा का भी स्थान है। ऐसी मान्यता है कि भैरव बाबा का भी दर्शन शुभकारी होता है। भक्तों के सौजन्य से कुछ दशक पूर्व हनुमान जी की प्राण प्रतिष्ठा की गई है ।बड़ी आस्था से भक्त नर देवी माता मंदिर की पूजा अर्चना के बाद भैरव बाबा तथा हनुमान जी का दर्शन करते हैं। घनघोर जंगल में अवस्थित नरदेवी माता मंदिर परिसर में प्राचीन कथा के मुताबिक पहले सुबह और शाम मां की सवारी बाघ मंदिर की परिक्रमा करता था । अर्ध रात्रि की बेला में बाघ आकर मां के दरबार में बैठता है। रात में साधना और सिद्धी करने वाले भक्तों ने भी अर्धरात्रि की वेला में बाघ का दर्शन किया है। मुख्य मार्ग से जंगल का रास्ता होते हुए घनघोर जंगल में माता के मंदिर तक पहुंचने वाले भक्तों के साथ अब तक कोई अप्रिय घटना नहीं घटी है। यह माता की कृपा नहीं तो और क्या है। मंदिर परिसर के दुर्गम रास्तों को नर देवी माता मंदिर समिति के भक्तों द्वारा साफ किया गया है। गड्ढों को मिट्टी से भरने का काम किया गया है। रास्ते में प्रकाश की व्यवस्था की गई है। बिहार यूपी समेत सीमावर्ती नेपाल के भी भक्तों की भीड़ माता के दरबार में लगी रहती है ।दुर्गा नवमी की तैयारी कर ली गई है। मंदिर का रंग रोगन किया गया है। रंग-बिरंगे जुगनू लाइट से मंदिर सजावट की गई है। पुजारी बाबा ने बताया कि वाल्मीकिनगर आने वाले पर्यटक सबसे पहले नरदेवी माता का दीदार करते हैं। माता सब की झोलियां भरती है। नरदेवी माता के मंदिर परिसर आने से पूजा अर्चना करने से कई बेरोजगारों को नौकरी भी मिली है। निसंतान औरतों को संतान की प्राप्ति हुई है ।कई लोगो को असाध्य बीमारियां भी ठीक हुई है। मान्यता के मुताबिक अमृत कुआं का जल पीना भक्त नहीं भूलते। दुर्गा माता का ही रूप है नर देवी माता। नर देवी माता की पूजा पिंडी रूप में की जाती है। मंदिर परिसर में कबूतर मुर्गा और बकरों को विचरण करते देखा जा सकता है। मंदिर की सुंदरता देखते ही बनती है।