रिक्शे की करते थे सवारी
न्यूज डेस्क ,पटना
दिवाकर पाण्डेय
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पटना(विशेष ब्यूरो)। पूर्व मुख्यमंत्री व समाजवादी नेता जननायक स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर ने राजनीति में ईमानदारी की मिसाल पेश की। वह 1952 में पहली बार विधानसभा चुनाव जीते और जीवन भर विधानसभा के चुनावों में कभी हारे नहीं।लेकिन न तो उनका पटना में ओर न उनके समस्तीपुर स्थित पैतृक गांव पितौझिया (अब कर्पूरी ग्राम) में एक रहने का ढंग से घर बना। वे आजीवन वंचितों, दलितों एवं गरीबों की आवाज बने रहे। जनसेवा की भावना से राजनीति में आए कर्पूरी ठाकुर इसी वजह से जननायक बन गए।आज के भौतिकवादी युग में जब ग्राम पंचायत के मुखिया की शान-ओ-शौकत से आंखें फटी रह जाती है, वहां कर्पूरी ठाकुर जैसे राजनेता जो एक बार उपमुख्यमंत्री, दो बार मुख्यमंत्री रहे, नेता विरोधी दल रहे और दशकों तक विधायक रहे, उनके आसपास अभाव का होना अपने समय के युग धर्म का कटु सत्य है। कई बार वे लंबी यात्राओं के क्रम में एक ही कपड़ा पहने होते, जब नहाते तो उसे ही सुखाकर फिर पहन लेते थे।गांव-गरीब व खलिहानों के बीच वे लगातार घूमते और आमलोगों के बीच ही रहना ज्यादा पसंद करते थे। कर्पूरी ठाकुर पटना में रिक्शे से ही चलते थे, क्योंकि उनकी वास्तविक आय कार खरीदने और उसका खर्च वहन करने की अनुमति नहीं देती थी। पहली बार मुख्यमंत्री बने तो अपने पुत्र रामनाथ ठाकुर को पत्र लिखा और कहा कि “तुम इससे प्रभावित नहीं होना। कोई लोभ लालच देगा, तो उस लोभ में मत आना। मेरी बदनामी होगी।” रामनाथ ठाकुर को भी कर्पूरी ठाकुर ने अपने जीवन में राजनीतिक तौर पर आगे बढ़ाने का काम नहीं किया। वे अक्सर अपनी राजनीतिक यात्राओं के दौरान कार्यकर्ताओं के घर पर ही भोजन करते थे। किसी भी छोटी-बड़ी घटना की सूचना मिलने पर वहां तुरंत पहुंच जाते थे। बराबर पैसा का अभाव रहने के बावजूद कार्यकर्ताओं की आर्थिक मदद भी किया करते थे।