जिला ब्यूरो संतोष कुमार की रिपोर्ट :
इस बार राखी बांधने का शुभ मुहूर्त दिन में एक बजकर बत्तीस मिनट के बाद है
न्यूज़ डेस्क, जिला सुपौल
संतोष कुमार
– अमिट लेख
सुपौल, (ए.एल.न्यूज़)। जिले के त्रिवेणीगंज अनुमंडल में जाने राखी बांधने का शुभ मुहूर्त भाई बहन के अद्भुत स्नेह और प्रेम का बंधन का पर्व है राखी। सोमवार को श्रावणी पूर्णिमा भी है। साथ ही राखी बांधने में मुहूर्त का अवश्य ही ध्यान रखना चाहिए। इस बार रक्षाबंधन उन्नीस अगस्त सोमवार को मनाया जाएगा। श्रावण के अंतिम सोमवार होने से पर्व की अति विशेषता का योग है। सोमवारी का व्रत भी है। इसी दिन भगवान विष्णु ने हयग्रीव अवतार धारण कर अपने भक्तो को उद्धार किये थे। इस दिन याज्ञबल्क ऋषि की जयंती भी मनायी जाएगी। इस बार राखी बांधने का शुभ मुहूर्त दिन में एक बजकर बत्तीस मिनट के बाद है। एक बजकर बत्तीस मिनट से पहले भद्रा का साया है जो राखी बांधने में बाधित या वर्जित रहेगा। भद्रा में दो कार्य वर्जित है एक तो फाल्गुनी पूर्णिमा और दूसरा रक्षा बंधन।
राखी बांधने का मंत्र :
“येन बद्धो बली राजा, दानवेंद्रो महाबलः तेन त्वां प्रतिबधनामि, रक्छे मा चल मा चल।।”
इस मंत्र का उच्चारण करते हुए बहन अपने भाइयों को विधिवत टीका चंदन, आरती दिखाने के बाद दाहिने हाथ में राखी बांधे।
रक्षाबंधन विशेष :
महाभारत के अनुसार द्रौपदी ने भगवान श्री कृष्ण को भाई कहती थी। एक बार कृष्ण भगवान की उंगली कट गई। द्रौपदी ने अपनी सारी फाड़कर मधुसूदन की उंगली पर एक पट्टी बांध दी। चीर हरण होने पर श्री कृष्ण भगवान ने उसकी लाज रखी और जीवन भर उसकी सहायता की। भाई-बहन का हार्दिक व पवित्र प्रेम और भावना ही इस त्यौहार का आधार है। यह कहना है त्रिलोकधाम गोसपुर निवासी मैथिल पंडित आचार्य धर्मेंद्रनाथ मिश्र का। देवलोक के रक्षाबंधन और उसकी देखा देखी धरती पर शुरू हुए रक्षाबंधन के चलन के बीच सबसे गंभीर परिवर्तन इस रूप में हुआ की, रक्षा से अभिमंत्रित धागों को देवलोक में पत्नी के द्वारा पति की कलाई पर बांधा जाता रहा है, जबकि धरती पर बहन द्वारा भाई की कलाई पर बांधे जाने लगा। देवलोक में सर्वप्रथम रक्षा के धागों को पत्नी इंद्राणी द्वारा अपने पति इंद्र को बांधा गया था। इसे ही पतिरक्षा सूत्र भी कहा जाता है। इस रक्षाबंधन के प्रभाव से हमारे समाज में भी बहुत सुधार हुआ है। कुछ ऐसे नियम प्रतिपादित हुए जिसे समाज को बहुत लाभ हुआ और दुराचार से लोगों को राहत मिली। भारतीय संस्कृति में स्त्री को भोग दासी न समझ कर उसका पूजन करने की भी संस्कृति रही है। कलयुग में हम सबों को रक्षाबंधन की आवश्यकता है। मंत्रों की शक्ति प्राप्त यह धागे ब्रह्मांड में व्याप्त दिव्य शक्ति के प्रति प्रेम व श्रद्धा का उद्घोष तो करते ही हैं साथ ही मुसीबत के समय ईश्वरीय सहायता को भी आकर्षित करते हैं। शायद इसी वजह से इस त्यौहार को हर बुराई से बचाने वाला पर्व भी कहा जाता है।