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Post: प्रभु नारायण ने ब्रह्मा जी को सुनाया था भागवत कथा : विदुषी कृष्णा सुनैना

प्रभु नारायण ने ब्रह्मा जी को सुनाया था भागवत कथा : विदुषी कृष्णा सुनैना

जिला ब्यूरो संतोष कुमार की रिपोर्ट :

अच्छे कर्म मोक्ष, गलत कर्म बंधन

श्रद्धालु भक्ति रस में डुबकी लगाने को विवश हो गए

न्यूज़ डेस्क, जिला सुपौल 

संतोष कुमार

– अमिट लेख

सुपौल, (ए.एल.न्यूज़)। जिले के त्रिवेणीगंज अनुमंडल मुख्यालय स्थित गांधी मैदान में आयोजित नौ दिवसीय गणेश महोउत्सव में प्रवचन एवं भजनों की अमृत बर्षा से त्रिवेणीगंज भक्ति के बयार में बह चला है। श्रद्धालु भक्ति रस में डुबकी लगाने को विवश हो गए।

फोटो : संतोष कुमार

गणेशोत्सव के मौके पर गांधी पार्क प्रतिदिन भक्तों की भीड़ उमड़ी रही। श्रीमद भागवत कथा के दूसरे दिन सोमवार को सांस सांस पर हरि भजें, व्यर्थ सांस ना खोएं। न जाने फिर इस सांस की आवन न होए यह भजन गूंजा तो श्रद्धालुओं झूमने पर मजबूर हो गया। बाराबंकी से पधारी प्रसिद्ध विदुषी कृष्णा सुनैना ने अपने सारगर्भित प्रवचन में श्रद्धालुओं को भागवत कथा का रसपान कराते हुए कहा कि भागवत कथा समस्त वेद वेदांगों का सार है। यह वेद रूपी कल्पवृक्ष का पके हुए मधुर फल के समान है। सभी वेद, उपनिषद, पुराण, धर्म शास्त्रों का निचोड़ इसमें निहित है। भागवत कथा के मर्म को समझने के बाद कुछ भी समझना शेष नहीं रह जाता है। श्रीमदभागवत कथा का प्रादुर्भाव चतुश्लोकी भागवत के रूप में भगवान श्रीमन नारायण से हुआ। यह ज्ञान नारायण द्वारा ब्रह्मा जी को प्राप्त हुआ। ब्रह्मा जी के द्वारा नारद जी को एवं नारद जी के द्वारा व्यास जी को। व्यास जी के द्वारा चतुश्लोकी भागवत को अठारह हजार श्लोकों में व्याख्या करके इस दिव्य ज्ञान को सुकदेव जी को प्रदान किया गया। सुकदेव जी ने इसे राजा परीक्षित को सुनाया। इसी माध्यम से आम लोगों तक ये पहुंचा। कलयुग में यह कथा मुक्ति प्रदायिनी है। उन्होंने कहा जल्दी मरने वाले किया करना चाहिए सांस सांस पर हरि भजें , व्यर्थ सांस ना खोएं। न जाने फिर इस सांस की आवन न होए। इसलिए हर परिस्थिति में चलते फिरते उठते बैठते भगवान का नाम लेना चाहिए। न्याय अन्याय, पाप-पुण्य यह सब मनुष्य के कर्मों पर निर्भर करता है। इंसान के जीवन में चाहे जितनी भी विकट परिस्थितियां हों, लेकिन उसे सदैव ईश्वर को याद करते रहने चाहिए। उन्होंने कहा कि दुनिया में अच्छे कर्मो को हमने स्वीकार कर लिया, जीवन की दिनचर्या में उतार लिया, यही मोक्ष है और अगर गलत कर्मो को हमने अपने जीवन में उतार लिया, तो यही बंधन है, नरक है। इसलिए हमारा संगत, उठना-बैठना शुद्ध होना चाहिए। उन्होंने ने कहा कि राजा परीक्षित ने प्रश्न किया, कि सात दिन में मरने वाले की मुक्ति का उपाय क्या है। इस पर शुकदेव जी महाराज ने कहा कि सात दिन कोई कम नहीं होता है। दुनिया में सात दिनों से अधिक कोई जीता भी नहीं है। रवि, सोम, मंगल, बुध, शुक्र और शनि इससे अधिक दिन कोई जीता ही नहीं है। आठवां दिन तो होता ही नहीं राजा परीक्षित ने श्री शुकदेव जी से पूछा कि जो साधक व्यक्ति मरने की तैयारी नहीं किया हो, और मरना निश्चित हो, तो उसे क्या करना चाहिए. इस पर श्री शुकदेव जी महाराज ने बहुत सुंदर बात कही। उन्होंने कहा कि मन को यदि वश में करना है, तो चार बातों को ध्यान में रखना होगा। जितासनो, जितश्वासो, जितसंगों, जितेंद्रिय. अर्थात, हे परीक्षित यदि मन को जीतना है, तो सबसे पहले आसन को जीतो। एक आसन पर कम-से-कम चार घंटे नहीं हो तो दो घंटे बैठने का प्रयास करो। उसे कहते हैं जितासनो दूसरा है जितश्वासो हर व्यक्ति को नित्य सुबह उठकर प्राणायाम करना चाहिए। इससे शरीर में चमक दिखेगी। तीसरी बात है जितसंगो अर्थात व्यक्ति में दोष भी आयेंगे संग से गुण और दुगुर्ण भी आयेंगे। इसलिए अच्छी संगति करो। चौथी बात है, जितेंद्रिय अर्थात अपनी इंद्रियों को जीतो।

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