



बेतिया से एक संवाददाता की रिपोर्ट :
सिस्टम की लाचारी ऐसी की दारुल बनात में अब झाड़ियां उग आईं हैं, खंडहर में तब्दील हो रहें इस बच्चियों के मदरसा को सरकारी स्तर पर मिलने वाले अनुदान की दरकार है
न्यूज़ डेस्क, जिला पश्चिम चंपारण
एक संवाददाता
– अमिट लेख
बेतिया, (ए.एल.न्यूज़)। बिहार का प्रसिद्ध इस्लामिक मर्कज़ आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। सिस्टम की लाचारी ऐसी की दारुल बनात में अब झाड़ियां उग आईं हैं, खंडहर में तब्दील हो रहें इस बच्चियों के मदरसा को सरकारी स्तर पर मिलने वाले अनुदान की दरकार है लिहाजा लोग आवाम समेत सरकार से मदद और सहायता की मांग कर रहें हैं ताकि बच्चीयां भी बच्चों के मुकाबले इल्म हासिल कर सकें।

दरअसल पश्चिम चम्पारण ज़िलें के मझौलिया प्रखंड अंतर्गत सरिसवा बाज़ार स्थित सेमरा मदरसा की स्थापना आज़ादी पूर्व वर्ष 1818 में दिनी तालीम के लिए की गईं थी लिहाजा बच्चों का मदरसा तो बना जो फ़िलहाल सामान्य है लेकिन इसी कैंप्स में अवस्थीत दारुल बनात अर्थात लड़कियों का मदरसा झिण छिण अवस्था में अधूरा पड़ा निर्माण की बाँट जोह रहा है।

ख़ास बात यह है की सेमरा मदरसा वह ख़ास इस्लामिक एदारा है जहाँ हिफ़्ज़ ए कुरआन पूरा किये बच्चों का जोड़ मतलब फरागत कर उन्हें हाफ़िज़ होनें का सनद दिया जाता है। लेकिन अफ़सोस की बात है की इसी मदरसे में करीबन 500 लड़कियों के लिए आवासीय भवन के निर्माण की बुनियाद तत्कालीन भारत सरकार के शिक्षा मंत्री अर्जुन सिंह नें यहाँ आकर ख़ुद रखी और केंद्र सरकार नें 70 लाख की अनुदान राशि की घोषणा किया।

बावजूद इसके किस्त दर किस्त अब तक महज़ 35 लाख रूपये हीं आवंटित किये गए लिहाजा नींव के साथ दिवार तो खड़ी की गईं, लेकिन न तो छत की ढलाई पूरी हो सकी और ना हीं इसके कार्य मुक़म्मल हुए। नतीजतन बच्चियों की बुनियादी तालीम को दीमक चाट रहें हैं। बताया जा रहा है की करीब 4 बीघा जमींन पर लड़कियों की मज़हबी तालीम और बुनियादी शिक्षा को लेकर सेमरा मदरसा में दारुल बनात की स्थापना की गईं ताकि बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ के सरकारी स्लोगन को पँख लग सकें लेकिन सिस्टम की बेबशी और नाकामी ऐसी की आज यह लड़कियों का अनाथालय मानों खंडहर में तब्दील हो रहा है।

अब मदरसे के जिम्मेवार और गणमान्य लोग सरकार समेत आवाम से भरपूर सहयोग की गुज़ारिश कर रहें हैं ताकि आधी आबादी को बुनियादी शिक्षा देकर स्वावलम्बी बनाया जा सकें, जिससे हमारी बेटियां आत्मनिर्भर बनने के साथ महफूज़ हो सकें। मदरसा के हेड मौलवी समेत प्रधान सहायक और स्थानीय ग्रामीणों का कहना है की अल्पसंख्यक वोट महज़ राजनीती का केंद्र बन कर रह गया है, मुसलमान वोटरों को चुनाव में सभी दल लुभाने से बाज़ नहीं आतें हैं लेकिन इनकी बुनियादी सुविधा पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है ऐसे में सवाल है की मुसलमान वोटरों का आख़िर कब तक महज़ राजनीतिक इस्तेमाल किया जायेगा, क्या उनकी जरूरतें और मूलभूत सुविधाएं भी पूरी की जाएंगी या महज़ वोट बैंक बनकर रह जायेंगें…! यहीं वज़ह है की एक स्वर में सभी सरकार और आवाम से मदद की गुहार लगा रहें हैं ताकि बेटियों को मजहबी तालीम देकर उन्हें काबिल बनाया जा सके। बता दें वर्ष 2005 के बाद बिहार और केंद्र में कई सरकारें बदली लेकिन सेमरा मदरसा के दारुल बनात के हालात नहीं बदले, लिहाजा एक कसक मुस्लिम समुदाय के लोगों को शाल रहा है जिसे समय रहते पूरा करने की ज़रूरत है।