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Post: रमेशचन्द्र झा के गीतों से खनकती है हृदय की झंकार

रमेशचन्द्र झा के गीतों से खनकती है हृदय की झंकार

रमेशचन्द्र झा जन्मदिन विशेष :

आज ही के दिन चम्पारण के फुलवरिया गांव में जन्म लिये थे रमेशचन्द्र झा

✍️ दिवाकर पाण्डेय / श्यामबाबू सिंह

-अमिट लेख

मोतिहारी/सुगौली।  अमृत महोत्सव के तहत स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले महान विभूतियों, क्रांतिकारियों, शहीदों व स्वतंत्रता सेनानियों को याद किया जा रहा है और उनकी उपलब्धियों के गौरवशाली इतिहास सहेज कर रखने की कोशिश की जा रही है। इसी श्रृंखला के तहत बिहार के महान स्वतंत्रता सेनानी और कवि-कथाकार रहे रमेशचंद्र झा को श्रद्धांजलि दी जा रही है। रमेशचन्द्र झा का जन्म 8 मई 1928 को मोतिहारी जिले के सुगौली स्थित फुलवरिया गाँव के मध्यमवर्गीय ब्राम्हण परिवार में हुआ। इनके पिता लक्ष्मीनारायण झा जाने-माने देश-भक्त और स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने स्वाधीनता संग्राम में अंग्रेज़ी हुकूमत से जमकर लड़ाई लड़ी थी और कई बार जेल भी गए थे। चम्पारण सत्याग्रह आन्दोलन के समय 15 अप्रैल 1917 को जिस दिन महात्मा गांधी चम्पारन आये, ठीक उसी दिन वे अंग्रेजो द्वारा गिरफ़्तार कर लिए गए थे और उन्हें 6 महीने की सश्रम कारावास की सज़ा सुनाकर हजारीबाग जेल भेज दिया गया था। रमेशचन्द्र झा का जन्म असहयोग आन्दोलन (नॉन कॉपरेशन – 1 अगस्त 1920) के बाद और नमक सत्याग्रह (दांडी यात्रा – 12 मार्च 1930) के पहले का है, जो भारतीय स्वाधीनता के महासमर की आधारशिला भी कही जाती है। इन पर ऐसे ज्वलंत समय का प्रभाव पड़े बिना नहीं रह सका और सिर्फ 14 वर्ष की उम्र में ही ये स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में कूद पड़े। 1942 के ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में इन्होंने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। चंपारण के सुगौली स्थित पुलिस स्टेशन में इनके नाम पर कई मुकदमे दर्ज किये गए जिनमें ‘थाना डकैती काण्ड’ सबसे ज्यादा चर्चित रहा। तब वे रक्सौल के ‘हजारीमल उच्च विद्यालय’ के छात्र थे। भारत छोड़ो आंदोलन के दौर में अंग्रेजों के दमन के कारण 24 अगस्त 1942 को बेतिया में जो गोली काण्ड हुआ, उसने पुरे बिहार को आंदोलित कर दिया। सुगौली मोतिहारी रेलवे थाना लूट और अग्निकांड को लेकर रमेशचन्द्र झा को भी अभियुक्त बनाया गया पर वे फ़रार हो गए। फिर वे लंबे समय तक फ़रार रह कर ही आन्दोलन चलाते रहे और अगस्त क्रांति को जीवित रखा। रमेशचन्द्र झा पर रक्सौल के थाना लूट और अग्निकांड के साथ साथ कई अन्य मामलों का मुकदमा भी चला। यही वजह थी कि उन्हें लंबे समय तक फ़रार रहना पड़ा था। वे जैसे ही एक आरोप से बरी होते, दुसरा आरोप सामने आ जाता। मोतिहारी जिले के एक जज ने तो यह कह कर एक बार उन्हें माफ़ कर दिया था कि इनता छोटा और सीधा-साधा दिखने वाला, ये लड़का थाना को लूटने और पिस्टल चुराने जैसा संगीन जुर्म नहीं कर सकता। पर सच्चाई ये थी कि ये सीधा-साधा दिखने वाला बच्चा दोनों ही ‘अपराधों’ में शामिल था। कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ द्वारा सम्पादित तथा विकास लिमिटेड, सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) की ओर से प्रकाशित मासिक पत्रिका ‘नया जीवन’ (सन् 1963) में प्रकाशित एक संस्मरण ‘..और तीसरे दर्जे का कैदी करार दिया गया’ में रमेशचन्द्र झा लिखते हैं- ‘सुगौली का अनवर दारोगा जानता था कि ये सब मेरा किया धरा है, पर उसे सबसे ज्यादा भय गायब हुई पिस्टल की वजह से था, इसलिए जब कभी वह मुझे गिरफ्तार करने आता तो आदर से ही बात करता और मैं भी कभी कभी कह देता कि आज गिरफ्तार होने का मेरा मूड नही है। रमेशचन्द्र झा सच्चे मायनों में एक राष्ट्रभक्त और स्वतंत्रता सेनानी थे। आजादी की लड़ाई भी लड़े और जेल की यातनाएं भी भोगी। लेकिन हर जेल-यात्रा उनके लिए साहित्यिक वरदान बनी। अपनी जेल यात्रा से ही उनका झुकाव साहित्य और लेखन की तरफ होता गया और आगे चलकर साहित्य के क्षेत्र में उन्होंने अपना बहुमूल्य योगदान दिया।

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