केके पाठक का आदेश से मुसीबत में शिक्षक
न्यूज़ डेस्क, मोतिहारी ब्यूरो
दिवाकर पाण्डेय
– अमिट लेख
मोतिहारी, (जिला ब्यूरो)। बिहार में जब से शिक्षा विभाग की कमान केके पाठक के हाथ में आई है। तब से एक न एक नया फरमान विभाग में आए दिन आ रहा है। ताजा मामला स्कूलों से छात्र-छात्राओं के नामांकन रद्द करने का है। शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक ने आदेश जारी किया है कि अगर जो भी छात्र-छात्राएं तीन दिन से ऊपर लगातार स्कूल नहीं आ रहे हैं, उनका नामांकन रद्द कर दिया जाए. उनके आदेश का असर ये हुआ कि पूर्वी चंपारण जिले में 10 हजार से ज्यादा विद्यार्थियों के नाम काटे जा चुके है। हालांकि स्कूलों में प्रधानाचार्यों और शिक्षकों के सामने उस समय मुसीबत खड़ी हो गई, जब छात्र-छात्राओं के परिजनों को पता चला कि स्कूलों से उनके बच्चों का नाम काटा जाने वाला है। मास्टर साहब लोगों ने लिस्ट तैयार कर ली है। जिसमें उनके बच्चों का नाम है। फिर क्या था, परिजन स्कूल में लाठी-डंडा लेकर पहुंच गए और हंगामा करने लगे। शिक्षकों को धमकाते हुए कहा कि साहब बच्चा तो यहीं पर पढ़ेगा, चाहे वह आए या न आए। फिलहाल आए दिन ऐसा स्कूलों में देखने को मिला रहा है। आदेश तो मुख्य सचिव का है, लेकिन मुसीबत प्रधानाचार्यों और शिक्षकों को झेलनी पड़ रही है। मोतिहारी के बाकरपुर में स्थित एक सरकारी हाईस्कूल में 190 बच्चों की लिस्ट तैयार की गई, लेकिन जैसे इसकी जानकारी बच्चों के परिजनों को हुई, वह स्कूल में आ धमके और हंगामा करने लगे। स्थिति ये बन गई कि शिक्षकों को पुलिस बुलानी पड़ी। पुलिस जब मौके पर पहुंची तो बच्चों के परिजनों का रोष देख वह भी वहां से खिसक ली। दखलअंदाजी देना पुलिस ने भी उचित नहीं समझा। पुलिस का कहना है कि हमारे पास संख्या बल की कमी है। इसको आप लोग ही हैंडल कर लें। दूसरा मामला कोटवा प्रखंड के कोटवा हाईस्कूल का है, जहां लिस्ट बनाने का काम अंतिम चरण में है, लेकिन स्कूल प्रबंधन बच्चों का नाम नहीं काट रहा है। स्कूल प्रबंधन का कहना है कि सुरक्षा के इंतजाम नहीं हैं. अगर स्कूल में बच्चों के परिजन आकर हंगामा करने लगे तो क्या होगा? कई स्कूलों में ऐसी घटनाएं हो चुकी है। शायद इसी वजह से स्कूल ने अभी तक अपनी लिस्ट जारी नहीं की है। बाकरपुर हाईस्कूल में 3,400 बच्चों का एमडिशन है। भवन की कमी के कारण पास में स्थित माध्यमिक विद्यालय में परीक्षा आयोजित की जाती है। इस विद्यालय में डेस्क-बेंच नहीं है। बच्चियों को जमीन पर बैठकर परीक्षा देनी पड़ती है। शिक्षकों का कहना है कि सरकार का यह फरमान जायज तो है, लेकिन कुछ कमियों के कारण धरातल पर नहीं उतर पा रहा है। शिक्षकों ने कहा कि अब बच्चे भी स्कूल आने लगे है। पहले के मुकाबले उनकी संख्या बढ़ी है। अगर स्कूलों में संसाधन पर्याप्त हो जाएं तो बच्चे प्रतिदिन आएंगे।