विकसित भारत संकल्प एवं संकल्पना‘ विषय पर विशिष्ट व्याख्यान कार्यक्रम आयोजित
न्यूज़ डेस्क, पूर्वी चंपारण
दिवाकर पाण्डेय
अमिट लेख
मोतिहारी (जिला ब्यूरो) : महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय में बुद्ध परिसर स्थित आचार्य बृहस्पति सभागार में ‘विकसित भारत : संकल्प एवं संकल्पना’ विषय पर विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन हुआ। कार्यक्रम में विशिष्ट वक्ता के रूप में जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र, नई दिल्ली के निदेशक ‘डॉ. आशुतोष भटनागर’ जी उपस्थित रहे। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति ‘प्रोफेसर संजय श्रीवास्तव’ जी ने किया। आयोजन समिति के संयोजक संस्कृत विभाग के सहायक आचार्य ‘डॉ. बबलू पाल’, सह-संयोजक हिन्दी विभाग के सहायक आचार्य ‘डॉ. श्याम नन्दन’ और ‘डॉ. गोविंद प्रसाद वर्मा’ थे। कार्यक्रम का शुभारंभ विद्वानों द्वारा माँ सरस्वती के चित्र पर पुष्पार्चन और द्वीप प्रज्वलित करके हुआ। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सह मुख्य वक्ता ‘डॉ. आशुतोष भटनागर’ जी का स्वागत माननीय कुलपति महोदय ने पुष्पगुच्छ एवं अंगवस्त्र देकर किया। । प्रो. प्रसून दत्त ने स्वागत भाषण दिया। कार्यक्रम के विशिष्ट वक्ता “डॉ. आशुतोष भटनागर” ने कहा कि विकसित भारत एक संकल्पना है और भारत को विकसित करना संकल्प है, जिस पर प्रधानमंत्री हमेशा चर्चा करते रहते हैं। अब्दुल कलाम के 2020 का विकसित रूप है- ‘विकसित भारत संकल्पना’। उन्होंने कहा कि भारत क्या है ये जानने के लिए बच्चों को किताबें नहीं पढ़नी पड़ती, भारत क्या है वो गोदी में खेलते- कुदते सीखते रहते हैं। जो किताबों में लिखा है भारत मात्र उतना ही नहीं है बल्कि भारत की जनता जैसा जीवन की रही है, जैसा भारतीय नागरिकों का विचार,व्यवहार और संस्कार है, उनकी परंपराएं हैं , उनका समग्र रूप ही ‘भारत’है। गुलामी की मानसिकता से बाहर आकर ही भारत को विकसित बनाया जा सकता है। भारत को समझने के लिए भारतीय दृष्टिकोण चाहिए। भारत पहले विश्व गुरु था। हम दुनियाभर में समान बेचते थे। पूरी दुनिया में हमारा व्यापार फैला था। देश में इतनी समृद्धि थी कि भारत सोने की चिड़िया कहलाता था। उद्योग और व्यवसाय में भारत नंबर एक पर था इसलिए इसे सोने की चिड़िया कहा जाता था। जब तक हम गुलामी की मानसिकता से बाहर नहीं निकलेंगे तब तक विकसित नहीं हो पाएंगे। भारतीयता तब आएगी जब गुलामी की मानसिकता से हम बाहर निकलेंगे । कार्यक्रम में उपस्थित छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने आगे कहा कि भारत को जानने के लिए मूल शब्दों को और ग्रंथों को पढ़ना और समझना होगा। मूल ग्रंथों को पढ़ कर भारत की समझ विकसित होगी।