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लीची से बने ड्राई फ्रूट बनाने की तकनीक का होगा पेटेंट

लीची से बने ड्राई फ्रूट बनाने की तकनीक का होगा पेटेंट

न्यूज डेस्क, मोतिहारी 

दिवाकर पाण्डेय

अमिट लेख 

मोतिहारी(विशेष ब्यूरो)। जिला की लीची से लिचमिस और ड्राई फ्रूट (लीची नट) तैयार होगा। राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र, मुशहरी के निदेशक डॉ. विकास दास ने लीची से ड्राई फ्रूट और लिचमिस बनाने की दो तकनीक के पेंटेट के लिए केन्द्र सरकार को आवेदन दिया है। इस तकनीक से तीन किलो लीची से एक किलो ड्राई फ्रूट व चार किलो से एक किलो लिचमिस तैयार होगा। खास बात यह कि इन दोनों उत्पादों को एक वर्ष तक आसानी से घर में रखा जा सकेगा। इसको विकसित करने वाले राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र के पूर्व वरीय वैज्ञानिक डॉ. एसके पूर्वे मोतिहारी के महात्मा गांधी समेकित कृषि अनुसंधान संस्थान में प्रधान वैज्ञानिक है। उन्होंने थाईलैंड वचीन की तरह भारत में भी ड्राइ लीची व लिचमिस बनाने का प्रयोग किया था। कारोबार में संभावनाओं को देखते हुए यह तकनीक विकसित की थी। राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र के निदेशक डॉ. दास ने बताया कि नवंबर में लिचमिस व दिसंबर में ड्राई लीची की तकनीक के पेटेंट को आवेदन किया गया है। इस तकनीक से चीन व थाईलैंड में अच्छा कारोबार होता है। भारत में लीची का अधिक उत्पादन होने के बावजूद तकनीक विकसित नहीं होने से उत्पाद तैयार नहीं हो रहा था।बीते वर्ष असम और उड़ीसा की कंपनियों से लिचमिस और ड्राई फ्रूट की तकनीक पर चर्चा की थी। यह तकनीक अभी हमारे पास ही है। पेंटेंट मिलने पर काम शुरू किया जाएगा। मांग बढ़ने से बढ़ेगी लीची किसानों की आमदनी निदेशक डॉ. दास ने बताया कि जिले में 14,400 हेक्टेयर में लीची के बाग है। इससे प्रति वर्ष उत्पादन 1.20 लाख टन लीची का उत्पादन होता है। अबतक लीची का स्क्वेश, पल्प, रसगुल्ला, जूस तैयार होता था। लिचमिस और ड्राई लीची प्रयोग के तौर पर तैयार होता था। पेंटेंट से लीची का कारोबार बढ़ेगा और पूरे देश में इसकी मांग होगी। कारोबार बढ़ेगा तो लीची उत्पादक किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी।

लिचमिस में बीज नहीं रहता, ड्राई लीची में रहता है बीज

वैज्ञानिक डॉ. एसके पूर्वे ने बताया कि लिचमिस में बीज नहीं होता है। यह किसमिस की तरह होता है। छिलका और बीज हटाकर इसे गर्म पानी में चीनी (पानी के अनुपात में आधा) मिलाकर तीन घंटे तक छोड़ दिया जाता है। फिर 50-60 डिग्री तापमान पर माइक्रोवेव ओवन में 12 घंटे तक सुखाया जाता है। सूखने पर प्लस्टिक पैक में रखकर फ्रीज में डाल देते है।ड्राई लीची दो तरह की होती है। एक में छिलका और दूसरा बगैर छिलका के होता है। दोनों में बीज रहता है। यह सूर्य की रोशनी या कृत्रिम हिट में तैयार होता है। छिलका वाले व बगैर छिलके वाले ड्राई लीची को बादाम की तरह तोड़कर कर खाया जाता है। डॉ. पूर्वे ने बताया चीन और थाईलैंड में भरपूर मात्रा में लिचमिस और ड्राई लीची तैयार की जाती है। वहां लोग भेाजन के बाद सुपारी, ईलाइची की तरह इसे खाते है। विदेशों में दोनों उत्पादों की काफी मांग रहती है।

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