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रुद्राष्टकम स्तुति के पांचवें दिन साधकों के आत्म चेतना की गई बात
मुंगेर से निरंजन कुमार की रिपोर्ट :
– अमिट लेख
मुंगेर, (जिला ब्यूरो)। चातुर्मास अनुष्ठान के अंतर्गत विगत माह से पादुका दर्शन सन्यास पीठ में आध्यात्मिक कार्यक्रम चल रहा हैं। गुरुवार को रुद्राष्टकम स्तुति सत्संग के चौथे दिन स्वामी माधवानंद ने रुद्राष्टकम स्तुति के प्रसंग को आगे जारी रखते हुए एक महत्वपूर्ण बिंदु उजागर करते हुए महर्षि काक भूसुंडी के पूर्व जन्म की विस्तृत चर्चा किया। जिसमें उन्होंने कहा कि अपने गुरु से शिव मंत्र की दीक्षा लेने के बाद काक भूसुंडी सांप्रदायिक संकीर्णता के शिकार हो गए और अन्य लोगों के मत का खंडन करने लगे। स्वामी जी बताते हैं कि सभी नौ सीखिए साधकों में यह दोष पनपता है और इसके परिणामस्वरुप होने वाली धार्मिक एवं सांप्रदायिक मतभेद ही इस धरा पर सर्वाधिक हिंसा और विनाश का कारण बनी है। सच्चे साधक को इस दोष से बचना चाहिए. सहिष्णु और उदारवादी होना चाहिए। रुद्राष्टकम के प्रथम दो श्लोक की व्याख्या करते हुए स्वामी जी ने कहा कि यह श्लोक भगवान शिव के निर्गुण-निराकार स्वरूप की स्तुति है। लेकिन, अगले दो श्लोक में भगवान के साकार स्वरूप की चर्चा करते हैं। यहां कोई विरोधाभास नहीं क्योंकि शिव साकार निराकार के पड़े हैं। साधक अपनी रुचि और प्रवृत्ति के अनुसार ही किसी भी मार्ग का चयन कर सकता है, लेकिन प्रारंभिक साधकों के लिए सरकार सुलभ है। वही, स्वामी परमहंस निरंजनानंद सरस्वती ने भक्ति का चर्चा करते हुए कहा भक्ति किसी भी समय की जा सकती है। आत्म चिंतन आध्यात्मिक और प्रभु के चरण के प्रति पूर्ण समर्पित होनी चाहिए। भगवान शिव सदैव अपने भक्त के प्रति चेतनशील रहते हैं। उनकी कृपा सदैव बनी रहती है यह भक्त पर निर्भर करता है कि वह अपने प्रभु को कैसे मान ले।