परम दयाल श्रीश्री ठाकुर अनुकूल चन्द्र जी का 136 वां जन्मोत्सव वीरपुर परिक्षेत्र में ठाकुर प्रेमियों के द्वारा अपने अपने घरों में रविवार को हर्षोल्लास के साथ मनाया गया
न्यूज़ डेस्क, सुपौल ब्यूरो
मिथिलेश कुमार झा, अनुमंडल ब्यूरो
– अमिट लेख
वीरपुर, (सुपौल)। परम दयाल श्रीश्री ठाकुर अनुकूल चन्द्र जी का 136 वां जन्मोत्सव वीरपुर परिक्षेत्र में ठाकुर प्रेमियों के द्वारा अपने अपने घरों में रविवार को हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। मालूम हो कि श्रीश्री ठाकुर अनुकूल चंद्र जी का जन्म 14 सितम्बर 1888 को पावना जिले के हिमायतपुर गांव में भाद्र शुक्ल पक्ष नवमी तिथि को हुआ था जो अभी बंगला देश में है।
भक्तो के द्वारा कार्यक्रम की शुरुआत सुबह के 07 बजकर 05 मिनट से बन्दे पुरूषोत्तमम का जयधोष करते हुए शंख नाद एवं घड़ी घंट की ध्वनि से किया गया। धर्मानुरागियो ने इनके आसन के अलावे अपने घरों को भी सुंदर ढंग से सजाकर इनके जन्मोत्सव को मनाया। तदुपरांत अपने आसपास के लोगो के बीच प्रसाद का वितरण किया। वीरपुर, बसन्तपुर, भवानीपुर, हृदयनगर, सीतापुर, कटैया, बिशनपुर, बलभद्रपुर, बनेलीपट्टी, भीमनंगर, समदा, रतनपुर के भक्तों ने श्रद्धा एवं निष्ठा के साथ इनका जन्मोत्सव मनाया। ठाकुर जी के पवित्र पंजाधारी ऋत्विक मिथिलेश कुमार झा ने बताया कि इनका असली नाम अनुकूल चन्द्र चक्रवर्ती है। इन्हें सत्संग नामक आध्यात्मिक आंदोलन के प्रणेता के रूप में जाना जाता है। इनके पिता शिवचन्द्र चक्रवर्ती एक धर्मनिष्ठ ब्राम्हण थे। इनकी माता मनमोहिनी देवी एक कुशल गृहणी थी। अपनी माँ के द्वारा ही ये भक्ति मार्ग में दीक्षित हुए और आज मनुष्य को धर्म पथ पर चलने का संदेश देकर जीवन जीने की सुंदर कला सिखला रहे हैं। इन्होने हिमायतपुर में सत्संग आश्रम मंदिर का निर्माण किया जो कि जन कल्याणकारी में आश्रम के रूप में विकसित हुआ।
दो सितरम्बर 1946 में ये देवघर आये और यहाँ स्थाई रूप से निवास कर धर्म का प्रचार करने लगे। 26 जनवरी 1969 को इनका निधन हो गया। देवघर सत्संग आश्रम सत्संग आध्यात्मिक आंदोलन के मुख्यालय में बदल गया। इस आश्रम परिसर में धर्मार्थ अस्पताल, विद्यालय, आनंद बाजार भवन, जहां लोगो को मुफ्त में भोजन मिलाता है, आयुर्वेद दवा निर्माण केंद्र, आदि स्थापित किए गए हैं। यह आश्रम पर्यटकों के लिए मुख्य आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। जबकि इनके अनुयायियों के लिए आस्था का एक विशिष्ट केंद्र बिंदु है। इस कलि काल में मनुष्य को बचाने बढ़ने का एक विशिष्ट मार्ग इन्होंने दिया है। सुपौल जिले में लगभग 32000 लोग इनके अनुयाई हैं।