जीविका :- एक उँची उड़ान
न्यूज़ डेस्क,सुपौल
संतोष कुमार,प्रभारी ब्यूरो
अमिट लेख
सुपौल : रूबी देवी सुपौल जिला अंतर्गत सदर प्रखंड के गोठबरूआरी पंचायत ग्राम बरैल की स्थाई निवासी हैं। दीदी बताती है कि उनकी पारिवारिक स्थिति बहुत खराब थी, घर में चार बेटियां थी उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि हम क्या करें और क्या ना करें क्योंकि पूरे परिवार की जिम्मेदारी उनके पर थी। उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था, तब दीदी वर्ष 2015 में पंचमुखी जीविका समूह से जुड़ी एवं जुडने के बाद वर्ष 2016 में 10000 रूपये का ऋण लेकर किराना दुकान शुरू की। दुकान में वृद्धि करने हेतु दीदी ने पुनः वर्ष 2017 में ग्राम संगठन से आई०सी०एफ० की राशि से 20000 रूपये का ऋण लिया। अब दीदी की दुकान में पहले की अपेक्षा ज्यादा बिक्री होने लगी थी, जिससे उनकी आमदनी भी बढ़ने लगी पहले की अपेक्षा दीदी के जीवन स्तर में काफी सुधार होने लगा तथा दीदी ने धीरे-धीरे सारे ऋण वापस कर दिए और चारों बेटियों को भी पढ़ाने लगी। दुकान से अच्छी आमदनी होने लगी तो दुकान में अब दीदी के पति ने भी हाथ बटाने का निर्णय लिया। दीदी को अपने काम के प्रति आत्मविश्वास बढ़ने लगा। दीदी ने पुनः 2022 ई0 में 45000 रुपए का ऋण लिया और किराना दुकान के साथ-साथ दूध, दही, घी, आइसक्रीम जैसे सामान भी बेचने लगी। दीदी बताती है कि पहले के अपेक्षा उनके जीवन स्तर में काफी सुधार हुआ है। उन्होंने अपने आप को ही नहीं अपितु अपने पूरे परिवार को गरीबों के दुष्चक्र से बाहर निकाला है। दीदी की मासिक आमदनी लगभग 15000 से 18000 रुपए महीने होने लगी है। इस तरह से दीदी के आत्मविश्वास और मनोबल को देखते हुए आसपास के दीदी भी जीविका से जुड़कर आजीविका बढ़ाने के प्रयास में लगी है। आरती देवी जो सुपौल जिला अंतर्गत सरायगढ़ भपटियाही प्रखंड के सरायगढ़ पंचायत के सरायगढ़ गांव की स्थाई निवासी हैं। आरती देवी चेतना सी०एल०एफ० के अंतर्गत आंदोलन जीविका महिला ग्राम संगठन से जुड़े हुए चमेली समूह की सदस्य हैं। उनके परिवार में पति एवं चार बच्चे भी हैं। दीदी के घर की स्थिति बहुत खराब थी। दीदी के पति छोटी सी चाय की दुकान करते थे जिस कारण परिवार चलाना मुश्किल हो पा रहा था बच्चों को पढ़ने में भी समस्या आ रही थी, इस कारण दीदी ने समूह से 20000 रूपये का ऋण लिया और चाय के साथ सत्तू भी बेचना शुरू कर दिया परंतु कुछ समय बाद उनके पति बीमार पड़ गए, जिस कारण दुकान की सारी पूंजी उनके इलाज में लग गई और पुनः परिवार की स्थिति बिगड़ गई। उन्होंने कर्ज चुकाने के बाद ही अन्य कर्ज लेने का फैसला किया। 2 साल बाद फिर कोरोना के कारण दीदी के बेटे को घर आना पड़ गया, जो बाहर काम रहा था और कुछ महीनो बाद दुकान भी बंद हो गई। परिवार में खाने के लिए भी पैसे नहीं थे, जिस कारण उन्होंने परिवार की सहमति से 15000 रूपये ऋण लिया और अपने परिवार में खाने का संकट को दूर किया धीरे-धीरे लोन वापस करने के पश्चात पुनः दीदी ने 90000 रूपये का ऋण लेकर दुकान लगाया। साथ में बेटे को भी बाहर काम करने के लिए भेज दिया, इसके अलावा दीदी ने खाने के लिए सब्जियां लगायी तथा गाय भी पाली जिस कारण उनका खर्च घट गया। आज उनका परिवार में पहले की तुलना में ज्यादा खुशहाली है। इस तरह इनको देखर गाँव की अन्य महिलाएं भी प्रोत्साहित होकर जीविका समूह से जुड़ रही है।