विशेष ब्यूरो बिहार दिवाकर पाण्डेय की रिपोर्ट :
इसको लेकर केन्द्र समूह अग्रिम पंक्ति प्रत्यक्षण के अंतर्गत लगभग 100 एकड़ क्षेत्रफल में सोयाबीन की खेती का प्रत्यक्षण किसानों के बीच कराने जा रहा है
न्यूज डेस्क, राजधानी पटना
दिवाकर पाण्डेय
– अमिट लेख
मोतिहारी, (ए.एल.न्यूज़)। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, कर्नाटक राजस्थान, गुजरात एवं आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों की तर्ज पर बिहार में भी सोयाबीन की खेती को बढावा देने के लिए पूर्वी चंपारण जिले के परसौनी स्थित कृषि विज्ञान केंद्र ने कवायद शुरू कर दी है। इसको लेकर केन्द्र समूह अग्रिम पंक्ति प्रत्यक्षण के अंतर्गत लगभग 100 एकड़ क्षेत्रफल में सोयाबीन की खेती का प्रत्यक्षण किसानों के बीच कराने जा रहा है। इसकी जानकारी देते केविके परसौनी के विषय वस्तु विशेषज्ञ (कृषि अभियंत्रण) डॉ.अंशु गंगवार ने बताया कि सोयाबीन की बुआई का मौसम शुरू हो चुका है। जुलाई महीने के मध्य तक सोयाबीन की बुआई की जा सकती है। उन्होंने बताया कि सोयाबीन एक प्रमुख प्रोटीन स्रोत वाले उत्पाद के तौर पर जाना जाता है। सोयाबीन को स्वर्ण सेम के नाम से भी जानते हैं। सोयाबीन की उपयोग की बात करें तो इसे पनीर बनाने, सोया मिल्क बनाने, सोयाबड़ी बनाने, सोयाबीन तेल आदि कई खाद्य पदार्थ के रूप में किया जाता है। सोयाबीन में 36 से 42 प्रतिशत तक प्रोटीन और 15 से 25 प्रतिशत तक तेल की मात्रा पाई जाती है। यही वजह है कि सोयाबीन का उपयोग खाद्य तेल, प्रोटीन स्रोत और सब्जी, पनीर आदि के रूप में भी किया जाता है। इसलिए सोयाबीन की खेती करना किसानों के लिए मुनाफे का सौदा हो सकता है। मृदा विशेषज्ञ डॉ. आशीष राय ने बताया कि सोयाबीन को दलहन और तिलहन दोनों के रुप में उगाया जाता है। इस फसल को उगाने के लिए दोमट मिट्टी, बलुई दोमट मिट्टी बहुत उपयुक्त होती है। मिट्टी का पीएच स्तर आदर्श रूप से 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए। उन्होंने किसानों को सलाह देते कहा कि इसके खेती के पूर्व मिट्टी की जांच जरूरी है। इसके अलावा इस फसल को उन खेतों में लगाना चाहिए जहां जल निकासी की व्यवस्था काफी बेहतर हो, क्योंकि पानी लगने से सोयाबीन की फसल खेतो में ही खड़े-खड़े खराब हो जाती है। चूंकि यह दलहन के भी गुण रखती है तो बुवाई से पूर्व बीज का उपचार अत्यंत आवश्यक है इसके लिए ट्राईकोडर्मा या राईजोबियम या पी.एस.बी.कल्चर 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के लिए उपयोग किया जाना चाहिए जिससे जड़ों में नोड्यूल बनते हैं और नाईट्रोजन का प्रयोग खेत में कम करना पड़ता है। राय ने बताया कि अच्छी उपज के लिए प्राप्त करने के लिए केंचुआ खाद 4-5 क्विंटल प्रति एकड़ एवं 8 कि.ग्रा. नत्रजन, 24-32 कि.ग्रा. फास्फोरस, 20 कि.ग्रा. पोटाश एवं 8 कि.ग्रा. सल्फर प्रति एकड़ की दर से बुवाई के समय उपयोग करना चाहिए। सिंगल सुपर फास्फेट और माईक्रोन्यट्रियंट का प्रयोग अच्छा पैदावार दे सकता है।डॉ. गंगवार ने बताया कि खेत में सोयाबीन की बुवाई करते समय कतार से कतार की दूरी 40-45 से.मी. होना चाहिए।
पौधे से पौधे की दूरी 8-10 से. मी. रखना चाहिए। बुवाई का कार्य मेड़-नाली विधि से की जा सकती है इसके साथ ही सीड ड्रिल मशीन से भी कर सकते हैं। बुवाई के समय जमीन में उचित नमी आवश्यक है। बीज जमीन में 2.5 से 3 से. मी. गहराई पर पडऩे चाहिए। मेड़ – नाली विधि से बुवाई करने पर नमी संरक्षण तो होता ही है इसके साथ ही उचित जल निकास की सुविधा भी मिलती है जोकि इस फसल के लिए अत्यंत आवश्यक है। सोयाबीन तिलहन की फसल होने के साथ साथ इसमें दलहनी गुण भी होता है अतः यह फसल खेतों में नत्रजन एकत्रीकरण करने में मददगार होती है। जिससे खेत की उर्वरा शक्ति बढती है। इसमें प्रोटीन की अधिकता होने के कारण यह विशेष रूप से प्रोटीन की कमी से होने वाली कुपोषणता को दूर करने में सहायक हो सकती है। सोयाबीन का सेवन न केवल शरीर की कोशिकाओं के विकास और मरम्मत में मदद करता है, बल्कि मानसिक संतुलन को बेहतर बनाने और दिमाग को तेज करने में भी सहायक है।