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रमजान के आखिरी अशरा में 12 साल का बच्चा अमीन खान ने किया ऐतकाफ

महाराजगंज जनपद से तैयब अली चिश्ती की रिपोर्ट :

ऐतेकाफ पर बैठने वालों को दो हज और दो उमरे का सवाब मिलता है। माहे रमजान का आखिरी अशरा चल रहा है

न्यूज़ डेस्क, जनपद महाराजगंज  

तैयब अली चिश्ती

– अमिट लेख

महाराजगंज, (ए.एल.न्यूज़)। जनपद के विकास खण्ड निचलौल अंतर्गत ग्राम सभा मिश्रौलिया निवासी मौलाना हारून मिस्बाही जो खपरैल वाली मस्जिद हुसैनाबाद गोरखनाथ गोरखपुर के इमाम हैं। उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि खपरैल वाली मस्जिद में एक 12 साल का बच्चा अमीन खान पुत्र स्वर्गीय हसीब अहमद ने किया ऐतकाफ, मौलाना हारून मिस्बाही ने बताया कि रमजान के आखिरी 10 दिनों में मुसलमान ऐतेकाफ पर बैठते हैं? जिसके अहमियत के बारे में उन्होंने बताया की रमजान के पाक महीने में अगर कोई व्यक्ति ऐतेकाफ पर बैठता है तो वह अल्लाह के बेहद करीब होता है। ऐतेकाफ पर बैठने वालों को दो हज और दो उमरे का सवाब मिलता है। माहे रमजान का आखिरी अशरा चल रहा है। यूं तो पूरा रमजान ही बरकतों और रमहतों वाला होता है लेकिन आखिरी अशरा सबसे अहम होता है। इस अशरे में रब की ज्यादा से ज्यादा इबादत की जाती है। इस अशरे में जहां गुनाहों की माफी मिलती है वहीं अल्लाह तआला अपने बंदों पर रहमत की बारिश करता है। इसी दौरान शब-ए-कद्र की रात होती है और लोग एतिकाफ पर बैठते हैं। इसकी फजीलतइस बारे में हमने मौलाना हारून मिस्बाही से बात की । उन्होंने बताया किअल्लाह की इबादत के लिए जिस तरह से मुसलमान रोजा रखते हैं, नमाज पढ़ते हैं,ठीक उसी तरह से ऐतेकाफ होता है। ऐतेकाफ में दुनिया से दूर तनहाई में अल्लाह की इबादत की जाती है। रमजान के आखिरी 10 दिन यानी 21 रोजे से ईद का चांद दिखने तक लोग इतिकाफ करते हैं। मर्द मस्जिद में रहकर अल्लाह की इबादत करते हैं। इस दौरान आपको दुनियादारी ,रिश्तेदारी से मिलने जुलने या ज्यादा बात करने की इजाजत नहीं होती है,सिर्फ बहुत ही जरूरी काम के लिए आप बातचीत कर सकते हैं। ऐतेकाफ में बैठे लोग ईद की चांद का दीदार होने के बाद ही अपने अपने घर मस्जिदों से लौटते हैं। ठीक इसकी बरकत और अजमत को देखते हुए एक 12 साल का नन्हा अमीन खान ने ऐतकाफ पर बैठा है, जिस को उसी जगह पर सोना,खाना पीना और इबादत करना है। ऐतेकाफ की बहुत बड़ी फजीलत है रमजान के पाक महीने में अगर कोई व्यक्ति ऐतेकाफ पर बैठता है तो वह अल्लाह तआला के बेहद करीब होता है। और ऐतेकाफ पर बैठने वालों को दो हज और दो उमरे का सवाब मिलता है। अल्लाह तआला ऐसे लोगों को जहन्नम से बहुत दूर कर देता हैं। इस दौरान बंदा अल्लाह से जो मांगता है, अल्लाह उसे अता फरमाता है। गुनाहों की माफी मिलती है। जब बंदा ऐतेकाफ की हालत में होता है तो उसका एक-एक लम्हा अल्लाह की इबादत में लिखा जाता है। उसका खाना-पीना और उठना बैठना, लोगों से खुद को दूर रखना सब कुछ इबादत में शामिल होता है। वही 12 साल का अमीन खान से पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि हम मस्जिद में बैठ कर इबादत करेंगे और मुल्क की सलामती के लिए दुआएं करेंगे।

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