



पटना ब्यूरो की रिपोर्ट :
बिहार चुनाव में नहीं लड़ पाएंगे, सत्ता का सपना टूटा
न्यूज़ डेस्क, राजधानी खबर
दिवाकर पाण्डेय
– अमिट लेख
पटना (ए.एल.न्यूज)। पटना के सियासी गलियारों में एक ऐसा धमाका हुआ, जिसकी गूँज सीधे दिल्ली के निर्वाचन भवन तक सुनाई दी। भारत निर्वाचन आयोग ने बिहार के 17 पंजीकृत मगर गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों पर ऐसा क़ानूनी बुलडोज़र चलाया कि उनकी पहचान ही मिटा दी। ये वही पार्टियाँ थीं जो कागज़ पर तो “सियासी गैंग” की तरह दर्ज थीं, मगर मैदान-ए-जंग में पिछले छह बरस से न के बराबर दिखाई दीं। आयोग के ताज़ा आदेश के बाद अब ये दल जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29बी और 29सी के तहत मिलने वाले किसी भी फ़ायदे के हक़दार नहीं रहेंगे। चुनाव चिह्न का आरक्षण? अब भूल जाओ। पार्टी फंड का कानूनी हक़? ख़त्म। राजनीतिक दौड़ में सीट पाने की उम्मीद? ज़ीरो। आयोग ने साफ़ कहा है अगर किसी को एतराज़ है, तो तीस दिन में अपील डालो, वरना खेल ख़त्म समझो। पर्दे के पीछे की कहानी कुछ और ही है। जांच में निकला कि इन दलों के दफ़्तर उनके पंजीकृत पते पर गायब मिले जैसे कोई गैंग लीडर वारंट लगते ही अंडरग्राउंड हो जाता है। 2019 से लेकर अब तक इन्होंने एक भी चुनाव लड़ने का न्यूनतम मानदंड पूरा नहीं किया। बस नाम का बोर्ड और पुराना रजिस्ट्रेशन सियासत की दुनिया में ये मुर्दा फाइलें बन चुके थे। बिहार के सियासी कब्रिस्तान में दफ़न हुए नाम कुछ यूँ हैं भारतीय बैकवर्ड पार्टी, भारतीय सुराज दल, भारतीय युवा पार्टी (डेमोक्रेटिक), भारतीय जनतंत्र सनातन दल, बिहार जनता पार्टी, देसी किसान पार्टी, गांधी प्रकाश पार्टी, हमदर्दी जन संरक्षक समाजवादी विकास पार्टी, क्रांतिकारी समाजवादी पार्टी, क्रांतिकारी विकास दल, लोक आवाज दल, लोकतांत्रिक समता दल, नेशनल जनता पार्टी (इंडियन), राष्ट्रवादी जन कांग्रेस, राष्ट्रीय सर्वोदय पार्टी, सर्वजन कल्याण लोकतांत्रिक पार्टी और व्यवसायी किसान अल्पसंख्यक मोर्चा।देशभर में भी 334 ऐसे राजनीतिक दलों को लिस्ट से आउट कर दिया गया है। अब पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों की गिनती घटकर 2520 रह गई है। यानी चुनावी गलियों में कई ठेकेदारों का सियासी ठेला पलट चुका है।आयोग का यह ऑपरेशन सिर्फ़ क़ानूनी कार्रवाई नहीं, बल्कि सियासी तंत्र को साफ़ करने का एक मैसेज भी है नाम के ठेकेदार, बिना मैदान में खेले, सियासत की दुकान नहीं चला पाएँगे।