



बेतिया से उप-संपादक का चश्मा :
4 सितम्बर से पश्चिम चम्पारण के सभी 102 कर्मचारी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर
न्यूज़ डेस्क, जिला पश्चिम चंपारण
मोहन सिंह
– अमिट लेख
बेतिया, (ए.एल.न्यूज़)। बिहार ऐम्बुलेंस कर्मचारी संघ (एटक) की राज्य स्तरीय कमिटी के आह्वान पर पश्चिम चम्पारण जिला के सभी 102 ऐम्बुलेंस कर्मचारी 4 सितम्बर से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जाएंगे। ऐम्बुलेंस कर्मचारियों ने आरोप लगाया है कि वे कुशल एवं प्रशिक्षित श्रेणी में आते हैं, इसके बावजूद उन्हें आज भी इस महंगाई भरे दौर में न्यूनतम मजदूरी से भी काफी कम वेतन पर काम करने के लिए विवश किया जा रहा है।

कर्मचारियों का कहना है कि मात्र 11 हज़ार रुपये मासिक वेतन पर उनसे लगातार 12-12 घंटे ड्यूटी कराई जाती है। इतना कम वेतन और इतनी लंबी ड्यूटी को उन्होंने बंधुआ मजदूरी से भी बदतर स्थिति बताया। कर्मचारियों ने यह भी कहा कि सरकार और राज्य स्वास्थ्य समिति ने निजी कंपनियों को खुली छूट दे दी है, और कंपनियां अपने मुनाफे के लिए ऐम्बुलेंस कर्मचारियों का शोषण कर रही हैं। उन्हें जीने लायक मजदूरी तक नहीं मिल रही है, जिससे उनके परिवार का भरण-पोषण करना भी कठिन हो गया है।
इस आंदोलन के माध्यम से ऐम्बुलेंस कर्मचारियों ने कई प्रमुख मांगें रखी हैं :
इनमें न्यूनतम मजदूरी सुनिश्चित की जाए और समय पर वेतन भुगतान हो। सेवा निवृत्ति की आयु 58 वर्ष से बढ़ाकर 60 वर्ष की जाए। ऐम्बुलेंस कर्मचारियों की सेवा को अस्थायी न रखकर स्थायी किया जाए। कार्य का समय तय हो और कर्मचारियों को शोषण से मुक्त किया जाए। हड़ताल की सफलता और संचालन के लिए 15 सदस्यीय कोर कमिटी का गठन किया गया है। इसमें सुनील राम, संजीत सिन्हा, संदीप यादव, शेख अस्लम, मुकेश पटेल, तरूण प्रसाद, ऋतु राज कुमार, शाहिद अली, अमीत शाही, आदेश आनन्द तिवारी, प्रदीप यादव, विजय राम, आदर्श मणि, आजाद आलम और रवींद्र कुमार को सदस्य बनाया गया है। यह कमिटी हड़ताल अवधि में आंदोलन की पूरी रणनीति और गतिविधियों के संचालन की जिम्मेदारी संभालेगी। बैठक में एटक प्रभारी ओम प्रकाश क्रांति समेत जिले के सभी ऐम्बुलेंस कर्मचारी उपस्थित रहे। बैठक में तय किया गया कि जब तक सरकार और स्वास्थ्य समिति उनकी जायज़ मांगों को मानकर ठोस कदम नहीं उठाती, तब तक आंदोलन जारी रहेगा।कर्मचारियों ने यह भी कहा कि वे जनता की सेवा के लिए हमेशा तैयार हैं, लेकिन अपने और अपने परिवार के हक और सम्मान के लिए यह संघर्ष अब मजबूरी बन चुका है।