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Post: राजनीति के संत थे लोकनायक जयप्रकाश नारायण : कुलपति

राजनीति के संत थे लोकनायक जयप्रकाश नारायण : कुलपति

छपरा से हमारे प्रमंडलीय ब्यूरो का संकलन :

लोकतंत्र की विकृतियों को दूर करने के लिए उनके विचारों पर अमल जरूरी : कुलपति

जयप्रकाश विश्वविद्यालय में जयंती पर “व्यक्तित्व, कृतित्व एवं विरासत” विषयक व्याख्यान का आयोजन

न्यूज़ डेस्क, छपरा/सारण 

ब्यूरो,  के.के.सेंगर

–  अमिट लेख
छपरा (सारण)। जयप्रकाश विश्वविद्यालय में शनिवार को अपने कुलदेवता लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती समारोहपूर्वक मनाई गई। इस अवसर पर जयप्रकाश अध्ययन केंद्र के तत्वावधान में अधिषद कक्ष में “जयप्रकाश नारायण : व्यक्तित्व, कृतित्व एवं विरासत” विषय पर विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया।

फोटो : के.के. सेंगर

समारोह की अध्यक्षता कुलपति प्रो. परमेंद्र कुमार बाजपेई ने की। उन्होंने अपने सारगर्भित उद्बोधन में लोकनायक की संपूर्ण क्रांति की अवधारणा को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से परिभाषित करते हुए कहा कि जेपी की विचारधारा न पूरी तरह समाजवादी थी, न सर्वोदयी और न गांधीवादी — बल्कि उनकी अपनी मौलिक लोकनीति थी। उन्होंने कहा कि “लोकनीति वही होती है जो सर्वहारा और सार्वभौमिक विचार-विमर्श से निर्मित हो।” कुलपति ने कहा कि शासन दिखना नहीं चाहिए, बल्कि उसका आभास होना चाहिए।

छाया : अमिट लेख

उन्होंने लोकतंत्र की विकृतियों को दूर करने के लिए जेपी के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने का आह्वान किया। मुख्य वक्ता स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखक डॉ. राकेश कुमार ने लोकनायक के जीवन के कई अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद जयप्रकाश नारायण ने देश के लिए सर्वस्व न्योछावर करने का संकल्प लिया था। उन्होंने हजारीबाग जेल से भागकर नेपाल में आजाद दस्ता की स्थापना की और ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में अग्रणी भूमिका निभाई। स्वतंत्र भारत में चुनाव सुधार, स्थानीयता और सेवा कार्यों पर जोर देने वाले लोकनायक वास्तव में “राजनीति के संत” थे। मुख्य अतिथि पटना विश्वविद्यालय की राजनीति शास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो. सीमा प्रसाद ने कहा कि जेपी का जीवन साहस, संघर्ष और मानवतावादी सोच का प्रतीक था।

छाया : अमिट लेख

उन्होंने अमेरिका में केमिकल इंजीनियरिंग छोड़कर समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर किया और समाज को शोषणमुक्त बनाने की दिशा में आजीवन प्रयासरत रहे। इस अवसर पर विश्वविद्यालय में लोकनायक की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया तथा वैदिक मंत्रोच्चार के बीच दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। डॉ. बैद्यनाथ मिश्रा ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया जबकि संस्कृत विभाग के शोधार्थियों एवं एनएसएस छात्राओं ने कुलगीत और स्वागत गान प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में कुलपति का स्वागत जयप्रकाश अध्ययन केंद्र के निदेशक डॉ. संजय पाठक ने किया और मुख्य अतिथि का स्वागत डॉ. रीता कुमारी ने। विषय प्रस्तुति डॉ. संजय पाठक, संचालन डॉ. रितेश्वर तिवारी तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रो. राणा विक्रम सिंह (अध्यक्ष, छात्र कल्याण) ने किया। इस अवसर पर कुलसचिव प्रो. नारायण दास, परीक्षा नियंत्रक डॉ. अशोक कुमार मिश्रा, एनएसएस समन्वयक प्रो. हरिश्चंद्र, महाविद्यालय निरीक्षक प्रो. शमी अहमद, वित्त पदाधिकारी श्री सुधांशु मिश्रा सहित विश्वविद्यालय के विभिन्न पदाधिकारी, प्राचार्य, प्राध्यापक, छात्र-छात्राएँ एवं कर्मचारी उपस्थित थे।

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