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Post: नोबेल शांति पुरस्कार अब ट्रंप के चरणों में

नोबेल शांति पुरस्कार अब ट्रंप के चरणों में

प्रसंगवश :

संजय पराते की टिप्पणियां :

नोबेल शांति पुरस्कार मारिया कोरिना मचाडो को मिल गया है, वे ट्रंप की प्रिय पात्र हैं, क्योंकि वेनेजुएला में अमेरिकी हितों की रक्षक है

प्रस्तुति : अमिट लेख

ट्रंप हार गए, लेकिन सीआईए की एजेंट जीत गयी! नोबेल पुरस्कार कमेटी के प्रति ट्रंप का गुस्सा अब थोड़ा शांत हो जाना चाहिए। नोबेल शांति पुरस्कार मारिया कोरिना मचाडो को मिल गया है। वे ट्रंप की प्रिय पात्र हैं, क्योंकि वेनेजुएला में अमेरिकी हितों की रक्षक है। उनसे बड़ा अमेरिका का कोई पैरोकार ट्रंप को नहीं मिला है, जो देश की संपत्ति अमेरिका को बेचने/ सौंपने की ऐसी ढीठ तरफदारी करे। महात्मा गांधी को यह पुरस्कार कभी नहीं मिला, इसके बावजूद कि समकालीन दुनिया में शांति और अहिंसा का उनसे बड़ा कोई योद्धा पैदा नहीं हुआ। उन्होंने दुनिया के सबसे बड़े क्रूर शासक और लुटेरे साम्राज्यवादी अंग्रेज़ों को भी झुकाकर दिखा दिया। जिस अंग्रेजी राज का सूरज दुनिया में डूबता नहीं था, वह भारत में अस्त हुआ और अंग्रेजों को बोरिया बिस्तर समेटकर भागना पड़ा। यह गांधीजी ही थे, जिन्होंने फिलिस्तीन मुक्ति आंदोलन का खुलकर समर्थन किया था। अटल बिहारी की भाजपा सरकार सहित स्वतंत्र भारत की सरकारों को भी उनके दिखाए इस रास्ते पर अमल करना पड़ा। लेकिन महात्मा गांधी को शांति का नोबेल पुरस्कार कभी नहीं मिला। लेकिन यह उन लोगों को जरूर दिया गया है, जिन्होंने युद्ध को बढ़ावा दिया और अनगिनत निर्दोषों की हत्या की। नोबेल शांति पुरस्कार पाने वाले युद्ध-प्रेमियों की सूची काफी लंबी है। नोबेल विजेता वुडरो विल्सन ने 12 देशों पर हमला किया था और अमेरिका को प्रथम विश्व युद्ध में शामिल करने को सही ठहराने के लिए झूठ का सहारा लिया। एफडीआर के विदेश मंत्री कॉर्डेल हल को नाज़ी जर्मनी से भाग रहे यहूदी शरणार्थियों के अमेरिकी प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने के बावजूद नोबेल पुरस्कार दिया गया। विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर और उनके वियतनामी समकक्ष ले डुक थो को संयुक्त रूप से 1973 में वियतनाम शांति समझौते के लिए नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था, फिर भी किसिंजर ने हस्ताक्षर करने के तुरंत बाद ही इस समझौते को तोड़ दिया था। दक्षिण वियतनामी सरकार ने राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चे पर अपने हमले फिर से शुरू कर दिए और अमेरिका ने उत्तरी वियतनाम पर बमबारी फिर से शुरू कर दी थी और यह युद्ध 1975 तक समाप्त नहीं हुआ था। वियतनाम ने इस युद्ध में साम्राज्यवादी अमेरिका की जो दुर्गति की, अब वह इतिहास का विषय है। बराक ओबामा भी अन्य नोबेल विजेताओं की तरह एक युद्ध-प्रेमी ही हैं। पदभार ग्रहण करने के कुछ ही समय बाद उन्होंने अफ़ग़ान युद्ध में 17,000 अतिरिक्त सैनिकों को भेजने का आदेश दिया था और लीबिया पर बमबारी करके उसे तबाह कर दिया। उन्होंने इराक में बुश के युद्ध को जारी रखा और इज़राइल का समर्थन किया। युद्ध-पिपासुओं को नोबेल शांति पुरस्कार मिलना ही इस पुरस्कार के चरित्र को दर्शाता है। इतिहास का यह कड़वा सबक है कि दुनिया में स्थाई शांति साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़कर ही हासिल की जा सकती है। जो लोग नफरत फैलाने, युद्ध का वातावरण बनाने और अपने देश के हथियार उद्योग के मुनाफे के लिए युद्ध आयोजित करने के दोषी हैं, जिन पर मानवता को बर्बरतापूर्वक कुचलने का कभी न मिटने वाला दाग लगा है, ऐसे लोगों को शांति के नाम पर कोई पुरस्कार दिया जाता है, तो यकीन मानिए कि उस पुरस्कार का चरित्र विशुद्ध राजनैतिक और युद्धोन्मादी ही होगा। शांति के नोबल पुरस्कार का चरित्र भी ठीक ऐसा ही है। और अब, इस साल का नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया है मारिया कोरिना मचाडो को। यह एक ऐसी महिला है, जिसने वेनेज़ुएला पर अमेरिकी सैन्य आक्रमण की ट्रम्प की योजना का सार्वजनिक रूप से समर्थन किया है और अमेरिकी नौसेना द्वारा वेनेज़ुएलावासियों की न्यायेतर हत्या का समर्थन किया है। उसने जनता द्वारा निर्वाचित वेनेजुएला की सरकार पलटने के लिए इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू और अर्जेन्टीना के राष्ट्रपति से सेना भेजने की अपील की थी। वह नरसंहारकारी इज़राइल राज्य का समर्थन करती है और राष्ट्रपति चुनाव जीतने पर अपनी एम्बेसी जेरुशलम में स्थानान्तरित करके इजरायल को पूर्ण समर्थन देने का ऐलान किया था। वह गाजा में इजरायल द्वारा फिलिस्तीनियों के जनसंहार का खुला समर्थन करती है। वह अमेरिका की इच्छानुसार वेनेजुएला के तेल संसाधनों का निजीकरण करके उसे अमेरिका के हाथ में सौंपना चाहती है। बेंजामिन नेतन्याहू, जिसे अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने युद्ध अपराधी घोषित किया है, का उसकी कारगुज़ारियों के लिए खुले आम समर्थन करती है। इस वर्ष का नोबेल शांति पुरस्कार जिसे दिया गया है, वह मारिया कोरिना मचाडो ‘देशभक्ति और शांति की’ इतनी सारी खूबियों से सुसज्जित हैं! स्वाभाविक है कि उसने अपना यह पुरस्कार ट्रंप के चरणों में रख दिया है, लेकिन लगता नहीं है कि इससे ट्रंप की नाराजगी कुछ कम होगी। ट्रंप की नाराजगी के बावजूद साम्राज्यवादी मीडिया का मचाडो को लेकर बल्ले-बल्ले करना आसानी से समझ में आता है।

श्री संजय पराते

(टिप्पणीकार अखिल भारतीय किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष हैं। संपर्क : 94242-31650)

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