बगहा से अमिट लेख टीम :
दोन का जनमत हुकूमत के विरोध में था, जो वोट बहिष्कार के रूप में सामने आया
बिहार की राजनीति से हासिये पर पहुँच चुकी कांग्रेस को चनपटिया विधान सभा सहित बिहार के नंबर एक बाल्मिकीनगर सीट से जुड़े आमजन मतदाताओं ने ऐतिहासिक जीत देते हुये एक मायने में बापू की कर्मभूमि से संजीवनी देने का भी काम किया है
न्यूज़ डेस्क, बगहा पश्चिम चम्पारण
अमित तिवारी, जगमोहन काजी, कमलेश यादव
– अमिट लेख
बेतिया/बगहा, (ए.एल.न्यूज़)। शासन-सत्ता से लबरेज एनडीए गठबंधन खेमें से विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजे पश्चिम चम्पारण जिले के लिये कुछ ज्यादा आश्चर्यजनक नहीं माना जा सकता।

अलबत्ता, बिहार की राजनीति से हासिये पर पहुँच चुकी कांग्रेस को चनपटिया विधान सभा सहित बिहार के नंबर एक बाल्मिकीनगर सीट से जुड़े आमजन मतदाताओं ने ऐतिहासिक जीत देते हुये एक मायने में बापू की कर्मभूमि से संजीवनी देने का भी काम किया है।
वैसे तो राजद का इस जिला के रामनगर सीट से खाता खुल सकता था..? परन्तु, जैसा की रामनगर क्षेत्र की बात करें तो दोन क्षेत्र से तकरीबन 15000 वोटों का बहिष्कार हो जाने से जहाँ महागठबंधन के वोटों का समीकरण हाशिये पर चला गया तो, सत्ता से नाराज अभी भी विकास की मुलभूत सुविधाओं से उपेक्षित आम दोन वासियों के वोट बहिष्कार का खामियाजा से जुड़े बदलाव की बयार का रुख पुनः शासन सत्ता की ओर मुड़ना तय माना जा रहा है, क्योंकि, दोन का जनमत हुकूमत के विरोध में था जो वोट बहिष्कार के रूप में सामने आया। लिहाजा, इस वाकये को समेटना राजद की प्रमुखता थी जिसे वे अपनी तरफ आकर्षित करने में असफल रहे। ठीक, ऐसे हीं जिला से एक और सीट कांग्रेस के खाते में जाते-जाते रह गयी। बगहा क्षेत्र में आसन्न विधायक अपने हीं दल के पूर्व विधायक आर. एस. पांडेय के अंजाम दिये कार्यों को भी अपने विकास का ढिंढोरा पीट आसन्न विधायक राम सिंह एक बार फिर से जनता के बीच चहेते ना होने के बावजूद अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। क्योंकि यहाँ पीएम मोदी का या फिर यूँ कहें की पार्टी नेताओं की मेहनत ज्यादा रंग नहीं ला सकी अलबत्ता निष्पक्ष आमजनों के ऊपर सनातनी लहर जो मौन थी उसकी एकता भारी पड़ गयी और आम साधारण लोगों के दिल में जगह बना चुके कांग्रेस उम्मीदवार जयेश मंगल सिंह को किन्हीं विशेष क्षेत्र से पटखनी मिल गयी। ठीक इसी प्रकार सबसे चौँकाऊ, सुशासन सरकार का चहेता थरूहट क्षेत्र पर अपना एकक्षत्र अधिकार मान रहे निर्दलीय उम्मीदवारी कर जीत का सेहरा पहन पहली बार विधानसभा पहुँचनेवाले धीरेन्द्र प्रताप उर्फ़ रिंकू सिंह अपनी दूसरी पारी में जहाँ पीएम मोदी और सुशासन बाबू के नाम पर बाजी मारने में सफल हुये थे, लिहाजा, क्षेत्र के आमजनों से मुखौटों पर जीत की सम्भावना समझ अपनी दूसरी पारी में पूरे पांच साल धनबटोरु गांव-गांव बिचौलियों के जाल में जहाँ उलझें तो वहीँ पंचायतवार किन्हीं मुखिया जी लोगों के वोट ठेकेदारी पर भरोसा कर आम जन से दूर होते चले गये।
अमिट लेख ने चुनाव पूर्व थरूहट की राजधानी में उतरी जहाँ कोंग्रेस की स्टार प्रचारक और महासचिव प्रियंका गाँधी के प्रति आमजनों में आये बदलाव को देखते हुये एकखबर “प्रियंका ने बदला थरूहट का मिजाज” तो सुशासन बाबू निर्वतमान सीएम की सभा में थारू समुदाय से जुड़े स्थानीय लोगों की उपस्थिति व्यापक संख्या में नहीं होने और
सन्नाटेदार जनसभा में दूर-दराज से इक्कठी की गई भीड़ द्वारा अमूमन नारा लगाने सहित ताली बजाने के नज़ारे को भाँप अमिट लेख ने “हरनाटांड में सीएम की सभा में दिखा फीका रंग” जैसे समाचार प्रमुखता से प्रकाशित किया था। वहीँ, वामपंथी विधायक भाई वीरेंद्र गुप्ता चम्पारण विकास पार्टी के संस्थापक और निष्पक्ष छवि के कई बार विधायक रह चुके समाजसेवी नेता दिलीप वर्मा के पुत्र समृद्ध को दिल से समर्थन देते हुये जदयू के तीर की उपस्थिति दर्ज करा दिया। जिसमें बेदाग़ छवि के नेता दिलीप वर्मा का खासा प्रभाव रहा है। चनपटिया सीट पर कांग्रेस की बाजी मारने के बाबत अमिट लेख को मिली जानकारी से एक बात साफ हो गयी है की स्थानीय बीजेपी का प्रसिद्ध चेहरा और केंद्र सरकार में कोयला राज्य मंत्री के पद पर आसीन सतीशचंद्र दूबे का जादू दिखने जैसी बातें,जैसा की समर्थकों द्वारा वायरल किया जा रहा था की भाजपा की डूबने वाली नय्या यानि संकट में फंसे सीटों का बेड़ापार कराएगा आखिर अपने गृह क्षेत्र से भाजपा की बैशाखी क्यों नहीं बन पाये। हालांकि, मोदी है तो मुमकिन है जैसे हवाओं को भी चनपटिया की जनता ने तब्बजो नहीं दिया।

जबकि, इस सीट को भाजपा में समेटने के निमित्त हीं पीएम मोदी ने यहाँ मतदान से गिनती के तीन दिन पूर्व एक जन सभा को सम्बोधित करते हुये लोगों से आह्वान किया था कि कट्टा कि सरकार नहीं चाहिए। लेकिन, नतीजा ठीक उलट होना एक आईना जरूर दिखा रहा की चाहे नतीजों के आधार पर बिहार के अन्य क्षेत्रों में भले हीं पीएम मोदी की सुनामी हो। लेकिन, आजादी के दीवाने पंडित राजकुमार शुक्ला का यह क्षेत्र उनको नजर अंदाज जरूर किया। यहाँ से भी पार्टी के हार का ठीकरा उनके स्थानीय पार्टी के दिग्गज नेता जी के हवाबाज समर्थकों से बढ़ी आमजनों की खिन्नता है, लिहाजा यह सीट भी भूनाने में कांग्रेस कामयाब हुई है। चर्चाओं की मानें तो पश्चिम चम्पारण की क्रमशः लौरिया, नौतन, और बगहा में विवशता का कमल खिला है जबकि आँकड़ों को देखें तो बेतिया सीट वह सनातनी तालाब है जिसमें कमल लगातार खिलते रहे हैँ, चाहे वह विधान सभा का चुनाव हो अथवा संसदीय चुनाव इन सीटों पर भाजपा के नाम पर हीं बहुमत मिलना तय है, उम्मीदवार चाहे जैसे भी हों पश्चिम चम्पारण जद्दोजहद से परे जब से कांग्रेस पार्टी और राजद की कमान इस जिले में ढीली हुई भाजपा का गढ़ बनते इसे देर नहीं लगा। लिहाजा, इस जिले से एनडीए की विक्ट्री कोई चौँकाऊ, नहीं, अलबत्ता बाल्मिकीनगर और चनपटिया सीट पर कांग्रेस की हुई जीत पिछले चुनाव के नतीजों के मुकाबले इस गठबंधन को एक सीट से कमजोर जरूर किया है जिसके कारण ढूंढ़ पराजित निकटतम एनडीए प्रत्याशियों को अपनी गलती का अहसास कर त्रुटियों में सुधार जरूर लाना चाहिए।







