लोगों का कहना है की बहरहाल दोन क्षेत्र में जो भी विकास दृष्टिगोचर हो रहा है उसमें सशस्त्र सीमा बल और टाइगर रिज़र्व प्रशासन की महत्वपूर्ण भूमिका है
जिनके प्रदत्त संसाधनों से इस पिछड़े इलाके के आम तबकों के अधरों पर भी मुस्कान का अहसास किया जा सकता है
✍ जगमोहन काज़ी, संवाददाता
– अमिट लेख
हरनाटांड, (बगहा ग्रामीण)। प्रखण्ड रामनगर के अंतर्गत दोन क्षेत्र वाल्मीकिनगर के कोर एरिया मे अवस्थित है। दोनवासी शिक्षा के मामले में बहुत ही पिछड़े है। वे तमाम पिछडेपन के शिकार भी है। शिक्षा के मामले में स्कूल सरकारी हैं, लेकिन शिक्षक के अभाव में शिक्षा अच्छी नहीं मिल पा रही है, साथ ही टयूशन हेतु काफी दूर जाना पड़ता है।
जनता ने बताया कि बरसात के मौसम में जंगली नदी में ज्यादा पानी होने के कारण स्कूली बच्चों को चार माह तक स्कूल त्यागना पड़ता है। उल्लेखनीय है कि चम्पारण के प्रसिद्ध दोन में आदिवासी बाहुल्य कई गांव हैं। जिसमें ढोकनी दोन, नरकटिया दोन, गोबरहीया दोन, नौरंगीया दोन कुल मिलकर दोन क्षेत्र में 22 गाँव है।
दोन के निवासी का जीवनयापन संघर्ष से भरा पड़ा है। प्रकृति की उपलब्धि परिपूर्ण है। प्राकृतिक और उन्मुक्त वातावरण में दोन निवासी कुछ मामलों में खुशहाल भी रहते है। लेकिन बरसात के मौसम में चार महीने में टापू में भी तब्दील हो जाता है उनका इलाका। बरसात के मौसम में पीने लायक नहीं रह जाता है चापाकल का पानी और बरसात के समय चारो तरफ एक ही तस्वीर होती है, चारो तरफ पानी बीच फंसे लोग और आवागमन ठप्प रहने से कई चीजों से वंचित रहना पडता है दोन वासियों को, बताते चले कि कितने लोगों की समय से ईलाज के लिए अस्पताल नहीं पहुँच पाने से मृत्यु हो जाती है।
थोड़ा बहुत पंचायत प्रतिनिधियों के माध्यम से छोटी-छोटी योजनाओं का लाभ मिलता है। परन्तु छोटी-छोटी योजनाओं से दोन के पुलो का निर्माण संभव नहीं है। दोन में आने जाने के लिए परशानियो का सामना करना पड़ता है। थारू आदिवासियों का गढ़ दोन क्षेत्र पर सरकार या राजनीतिक दल आखिर, क्यों नजर नहीं डाल रहे हैं। आखिर थारू आदिवासियों से पटे दोन क्षेत्र में सरकार प्रायोजित थरुहट विकास प्राधिकरण से जुड़े योजनाओं को कब पटल पर लाया जायेगा। यदि सरकार वास्तव में थरुहट के विकास का मंसूबा सच में पाली है, तो जंगल से बाहरी क्षेत्रों तक हीं विकास प्राधिकरण की लकीरें क्यों खिंची जा रही।
कहीं दोन के समग्र विकास में टाइगर रिज़र्व का कानून तो आड़े नहीं आ रहा। क्योंकि, प्रतिवर्ष थरुहट विकास प्राधिकरण के मानचित्र में दोन इलाका दृष्टिगोचर नहीं हो पाता। नेताओं से पीठ थप थपवा कर आनंदित होने वाले इस बिरादरी के अगुआ लोगों पर भी अब तो संशय होना लाजिमी है। कारण निर्मूल और भ्रमात्मक कत्तई नहीं अपितु इस क्षेत्र के समग्र विकास के मामले में सरकार ने थारू समाज को खुश रखने के लिए विशेष योजना तो बनायीं है, परन्तु सच यहीं है की इसमें दोन इलाके को लालीपॉप देते हुए विकास की मुलभुत योजनाओं के प्रतिपालन हेतु एक गुप्त लक्ष्मण रेखा का भी इजाद कर दिया गया है। जिसके चलते ऐसी योजनाओं से हमारा दोन आज भी अछुण है। यहीं कारण भी प्रमुख है की केवल चुनाव के समय हीं हमारे नेता दोन क्षेत्र का रुख करते हैं। जनता धीरे धीरे इन सभी मुद्दों पर विचार करते हुए मन बना रही है कि, इस बार दोन क्षेत्र किसी कर्मठ जूझारू ईमानदार नेताओं को जीत का सेहरा बांधेगे, जो दोन क्षेत्र का समग्र विकास करने का मंसूबा पाले हो। समग्र दोनवासी वैसे किसी अपने तारणहार की आस में नित्य आँखें बिछाएं बैठे हैं। लोगों का कहना है की बहरहाल दोन क्षेत्र में जो भी विकास दृष्टिगोचर हो रहा है उसमें सशस्त्र सीमा बल और टाइगर रिज़र्व प्रशासन की महत्वपूर्ण भूमिका है। जिनके प्रदत्त संसाधनों से इस पिछड़े इलाके के आम तबकों के अधरों पर भी मुस्कान का अहसास किया जा सकता है।