



संगीत श्रवण अमृतपान के समान है। संगीत परमात्मा से मिलन का लयात्मक मार्ग है। संगीत शास्त्र पर आधारित सभी ग्रंथों का उद्गम सामवेद से हुआ है
✍️ अरुण कुमार ओझा, अनुमंडल ब्यूरो
– अमिट लेख
आरा/भोजपुर, (विशेष)। हिन्दुस्तानी संगीत सर्वोपरि है। संगीत श्रवण अमृतपान के समान है। संगीत परमात्मा से मिलन का लयात्मक मार्ग है। संगीत शास्त्र पर आधारित सभी ग्रंथों का उद्गम सामवेद से हुआ है। उक्त बातें वरिष्ठ संगीतज्ञ सुशील कुमार ‘देहाती’ ने कहा। अवसर आरा संगीतज्ञ परिवार के तत्वाधान में आयोजित हिन्दुस्तानी संगीत के विविध आयाम का संकलन ‘सामवेद’ का। स्थानीय आश्रम परिसर में आयोजित इस कार्यक्रम का उद्घाटन संरक्षक विदुषी बिमला देवी व सुशील कुमार ‘देहाती’ ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्जवलित कर किया। युवा कलाकारों में सुश्री चंदा कुमारी ने राग भीमपलासी में तीनताल की बंदिश “जा जा रे अपने मन्दिरवा जा” व दादरा “सांवरिया कों कोई बुला दे मोरा जिया लागे ना” प्रस्तुत कर वाहवाही लूटी। वहीं श्रेया पाण्डेय ने राग देश में विलंबित जतताल में लयबद्ध ठुमरी “मोरा सैयां बुलावे आधी रात नदिया बैरी भयी” व राम भजन “मंगल भवन अमंगल हारी द्रबहु सु दसरथ, अजिर बिहारीकी प्रस्तुति से सबका मन मोह लिया। वहीं स्नेहा पाण्डेय ने शुद्ध कथक में उपज, ठाट, आमद, परन व तिहाई प्रस्तुत कर समां बांधा। हारमोनियम पर युवा कलाकार निमेश कुमार कुमार व बांसुरी पर आरजू सुमन में संगति से रंग भरा। इस अवसर पर कार्यक्रम पदाधिकारी रविशंकर ने कहा कि आरा संगीतज्ञ परिवार की ओर से प्रत्येक माह के अंतिम रविवार को अलग अलग स्थानों पर सामवेद का आयोजन किया जाएगा। हिन्दुस्तानी संगीत की समृद्ध पृष्ठभूमि से युवाओं को अवगत करवाने में यह कार्यक्रम सहायक सिद्ध होगा साथ जन जन को स्वच्छ एवं स्वस्थ संगीत से जोड़ने का सशक्त माध्यम होगा। भविष्य में सुदूर क्षेत्रों में भी इस आयोजन की योजना बनाई जा रहीं है। मंच संचालन नीतीश पाण्डेय व धन्यवाद ज्ञापन गुरु बक्शी विकास ने किया।