अनेक पौराणिक व सामाजिक मान्यताओं को लेकर रक्षाबंधन का पवित्र त्योहार मनाने की सदियों पुरानी परंपरा
नगर निगम की महापौर ने अपने आवासीय कार्यालय पर पहुंचे लोगों के बाद अपनी सास और ससुर के साथ मनाया ‘रक्षाबंधन’
न्यूज़ डेस्क
– अमिट लेख
बेतिया, (मोहन सिंह)। नगर निगम की महापौर गरिमा देवी सिकारिया ने लाल बाजार स्थित अपने आवासीय कार्यालय पर विभिन्न क्षेत्रों से आए नागरिकगण के साथ रक्षा बंधन का त्योहार मनाया। इससे पूर्व उन्होंने अपनी सास माता सुमन सिकरिया की उपस्थिति में ससुर पिता भोलानाथ सिकारिया के हाथों में रक्षा सूत्र बांध कर रक्षाबंधन बांध कर अपनी ‘रक्षा कवच’ बने रहने का आशीर्वाद लिया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि रक्षाबंधन, पुरुषजन के अजेय होने की कामना और नारीत्व के रक्षा की प्रार्थना का पवित्र त्योहार है। यहां रक्षा बंधन का तात्पर्य बांधने वाले एक ऐसे धागे से है, जिसमें मूलतः बहनें अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाकर जीवन के हर संघर्ष तथा मोर्चे पर उनके सफल होने तथा निरन्तर प्रगति पथ पर अग्रसर रहने की ईश्वर से प्रार्थना करती हैं। भाई इसके बदले अपनी बहनों की हर प्रकार की विपत्ति से रक्षा करने का वचन देते हैं और उनके शील एवं मर्यादा की रक्षा करने का संकल्प लेते हैं। श्रीमती सिकारिया ने कहा कि इसके अतिरिक्त भी रक्षा बंधन के त्योहार को लेकर अनेक पौराणिक मान्यताएं हैं। जिसके अनुसार विष्णु ने वामन अवतार के रूप में राक्षस राजा बलि से तीन पग में उनका सार राज्य मांग लिया था और उन्हें पाताल लोक में निवास करने को कहा था। तब राजा बलि ने भगवान विष्णु को अपने मेहमान के रूप में पाताल लोक चलने को कहा। जिसे विष्णु भगवान मना नहीं कर सके। लेकिन, जब लंबे समय से विष्णु भगवान अपने धाम नहीं लौटे तो माता लक्ष्मी जी को चिंता होने लगी।तब नारद मुनी ने उन्हें राजा बलि को अपना भाई बनाने की सलाह दी और उनसे उपहार में विष्णु जी को मांगने को कहा। मां लक्ष्मी ने ऐसा ही किया और इस संबंध को प्रगाढ़ बनाते हुए उन्होंने राजा बलि के हाथ पर राखी या रक्षा सूत्र बांधा और तभी से राखी अर्थात रक्षाबंधन की शुरुआत हुई। महापौर श्रीमती सिकारिया ने एक अन्य पौराणिक मान्यता का उल्लेख करते हुए बताया कि देवताओ और असुरों के संग्राम में देवताओं के पराजित हो जाने के बाद देवराज इंद्र देव तक को छुप कर रहना पड़ गया था। तभी इंद्राणी ने श्रावणी पूर्णिमा के पावन अवसर पर द्विजों से स्वस्तिवाचन करवा कर रक्षा का तंतु लिया और इंद्र की दाहिनी कलाई में बांधकर युद्धभूमि में लड़ने के लिए भेज दिया। इस ‘रक्षा बंधन’ के प्रभाव से दैत्य भाग खड़े हुए और इंद्र की विजय हुई। राखी बांधने की प्रथा की शुरुआत यहीं से होने की वैदिक मान्यता है।