AMIT LEKH

Post: वीटीआर पर्यटक स्थलों में भालूओं की चहलकदमी देख पर्यटकों में कौतुहलऔर रोमांच

वीटीआर पर्यटक स्थलों में भालूओं की चहलकदमी देख पर्यटकों में कौतुहलऔर रोमांच

जिला ब्यूरो नसीम खान “क्या” की रिपोर्ट :

लोगों का कहना है कि पहले भालू लोगों को देखकर डरते थे और भाग जाते थे

न्यूज़ डेस्क, बगहा पुलिस जिला 

नसीम खान “क्या”

– अमिट लेख

बगहा, (ए.एल.न्यूज़)। वाल्मीकिनगर में अमूमन प्रतिदिन भालुओं की चहलकदमी देखी जा रही है। ये भालू वीटीआर जंगल से निकल कर रिहायशी इलाकों में पहुंच रहे हैं।

फोटो : नसीम खान “क्या”

सवाल है कि आखिर जंगल छोड़ भालू रिहायशी इलाकों में क्यों पहुंच रहे हैं? लोगों का कहना है कि पहले भालू लोगों को देखकर डरते थे और भाग जाते थे। जानमाल को नुकसान पहुंचाते थे लेकिन अब यह फ्रेंडली होते जा रहे हैं। लोगों को नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं। अब भालू आराम से चहलकदमी करते रहता है। वन्य जीवों के जानकार बताते हैं की वीटीआर में 400 से अधिक स्लॉथ भालू हैं।इनमें कई गुण पाए जाते हैं लेकिन इनमें सूंघने की क्षमता अधिक है।भालू एक किमी से ज्यादा दूर के शिकार या भोजन को सूंघ लेते हैं। यही वजह है की भालू भोजन और शिकार की तलाश में कॉलोनियों तक पहुंच जा रहे हैं।बतादें,भालू इंसान की तरह सर्वाहारी होते हैं। उन्हें मांस के अलावा कंद मूल और खासकर शहद बेहद पसंद है। लेकिन हाल के कुछ वर्षों में जंगल में बढ़ रही अन्य जानवरों की संख्या की वजह से भोजन मिलने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है,यह खास वजह हो सकती है,जिस कारण भालू रिहायशी इलाकों का रुख कर रहे हैं। ये लोगों के बीच इतना घुलते मिलते जा रहे हैं की हमला भी नहीं कर रहे हैं।वाल्मीकिनगर ई टाइप कॉलोनी निवासी आफरीन खान कहती हैं कि यहां काफी संख्या में पर्यटक आते हैं। चुकी यह एक पिकनिक स्पॉट है। लिहाजा उनके द्वारा फेंके गए भोजन को सूंघकर भालू कभी झुंड में तो कभी अकेले पहुंच जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि पहले तो लोगों को देखकर भालू डरते थे और जंगल का रुख कर लेते थे लेकिन अब ये भालू डरते नहीं हैं।आफरीन बतातीं हैं कि उनके कॉलोनी में भी भालू आते हैं।उन्होंने बताया कि भालू मानव और बंदर की तरह ही एक समझदार और सामाजिक प्राणी है। भालू और इंसान की दोस्ती लंबे समय से रही है। पहले गांव और शहर के चौक चौराहों पर डमरू बजाकर भालू का खेल दिखाते कई मदारी दिखते थे। दरअसल भालू से कलंदर समुदाय के लोगों की जीविका चलती थी। भालुओं को वे ट्रेंड करते थे जिस कारण भालू उनकी बात समझते थे।लेकिन 1972 में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम लागू होने के उपरांत वन विभाग की जैसे-जैसे सख्ती बढ़ी, कलंदर समाज का खानादानी पेशा और पेट भरने का जरिया भी खत्म होता गया। आफरीन खान कहती हैं कि पौराणिक कथाओं में भी भालुओं के इंसान से गहरे रिश्ते का जिक्र मिलता है। रामायण काल में जामवंत इसके बहुत बड़े उदाहरण हैं।आफरीन खान आगे बतातीं हैं कि पौराणिक कथाओं के कारण ही लोग उसे रिहायशी इलाकों से भगाते नहीं है। भालू आराम से चहलकदमी करते रहते हैं।नतीजतन ये लोगों के बीच चले आ रहे हैं। वहीं वीटीआर के रमणीक पर्यटक स्थलों पर भी ये भालू चहलकदमी करते रहते हैं,जिसे देख सैलानी रोमांच से भर जा रहे हैं।बतातें चलें कि ये भालू जंगल के परिस्थितिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।जंगली जानवरों के शिकारी के रूप में भी काम करते हैं।

Recent Post