विशेष ब्यूरो बिहार दिवाकर पाण्डेय की रिपोर्ट :
अनपढ़ता के बावजूद सियासी समझबूझ यहां के लोगों की काफी बेहतर है
न्यूज डेस्क, राजधानी पटना
दिवाकर पाण्डेय
– अमिट लेख
पटना, (ए.एल.न्यूज़)। साक्षरता के मामले में पूर्णिया राज्य के पिछड़े जिलों में शुमार है। अभी भी साक्षरता दर 50 फीसदी के आसपास ही है। मगर अनपढ़ता के बावजूद सियासी समझबूझ यहां के लोगों की काफी बेहतर है। पहले पूर्णिया लोकसभा चुनाव और अब रूपौली विधानसभा उपचुनाव में यहां के मतदाता ने साफ-साफ संदेश दिया है कि जो सुख-दुख में साथी की तरह उनके साथ खड़े रहेंगे, उसे ही वह अपना नेता चुनेंगे। जो नेता जनता के करीब नहीं रहेंगे वह सियासत से दूर हो जाएंगे। लोकसभा चुनाव में जनता ने जहां निर्दलीय पप्पू यादव को जीत का सेहरा पहनाया तो रुपौली उपचुनाव में शंकर सिंह को विधायक बना दिया। पूर्णिया में दो चुनावों के परिणाम सत्ता पक्ष और विपक्ष के लिए आसन्न 2025 विधानसभा चुनाव के लिए किसी सबक से कम नहीं है। पहले लोकसभा और फिर रुपौली विधानसभा उपचुनाव सीमांचल की राजनीतिक परिवेश को भी बदलने का काम शुरू कर दिया है। अमूमन नेता हवा-हवाई होते हैं। दिल्ली-पटना से अपने घर पर आए। खास लोगों से मेल मिलाप के बाद फिर रवाना हो गए। ऐसे में जनता से उनकी दूरी बनती चली जाती है। इसे जो नेता पाटने में कारगर साबित हो रहे हैं, वहीं विधायक और सांसद बन रहे हैं। पूर्णिया लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव की जीत के पीछे उनका लोगों के साथ मेल जोल ही था। लोकसभा चुनाव से छह माह पूर्व प्रणाम पूर्णिया कार्यक्रम के माध्यम से उन्होंने सभी 200 पंचायतों के एक हजार गांवों में जाने का काम किया। यही उनकी जीत का प्रमुख कारण बना। गांवों में जाने पर लोगों ने उन्हें अपना हाल बताया। सुख-दुख सांझा किया। इसका ही तकाजा रहा कि लोगों ने निर्दलीय प्रत्याशी को सिर आंखों पर बैठा लिया। लोकसभा चुनाव के दौरान जदयू प्रत्याशी संतोष कुशवाहा पर भी लोगों ने सीधा आरोप लगाया था कि चुनाव जीतने के बाद वह क्षेत्र में नदारद रहे। यही वजह रही कि पीएम के आने के बावजूद चुनावी सफलता उन्हें नहीं मिल पायी। कुछ इसी तरह के आरोप पूर्व सांसद पप्पू सिंह पर भी लोगों ने लगाए थे। रूपौली की जनता ने भी उपचुनाव में कुछ इसी तरह का संदेश दिया। 2005 में शंकर सिंह चंद दिनों के लिए एक बार विधायक बने। इसके बाद वह हर बार चुनावी मैदान में उतरे मगर जीत नहीं पाए। मगर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। लगातार क्षेत्र भ्रमण कर जनता के दुख-दर्द बांटते रहे। इसका उन्हें भी इनाम मिला। निर्दलीय प्रत्याशी के सामने जदयू और राजद जैसी बड़ी पार्टियों के प्रत्याशी ढेर हो गए। रूपौली उपचुनाव में हार के बाद एनडीए ने इस पर मंथन का दौर शुरू कर दिया। रूपौली, पूर्णिया से लेकर पटना तक की राजनीति गरमाई है। हार के कारणों को ढूंढने के साथ अगले विधानसभा चुनाव से पहले इसे दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। लोगों से सीधा वास्ता के अलावा वर्करों में जोश भरने की कवायद अब शुरू होने वाली है। दो चुनाव परिणाम के बाद अगले साल चुनावी मैदान में उतरने वाले नेताओं की नींद अब टूटने लगी है। क्षेत्र भ्रमण कर जनता के साथ संवाद स्थापित करने का मन बनाने लगे हैं। आने वाले दिनों में राजनीतिक दलों के कई नए रंग-रूप देखने को मिलेंगे।