



यह कारागृह नहीं ,बल्कि सुधार गृह है। इसमें आपको स्वयं में सुधार लाने हेतु रखा हुआ है, शिक्षा देने हेतु नहीं। आप इस कारागृह को संस्कार परिवर्तन का केंद्र बना लें
न्यूज़ डेस्क, सुपौल ब्यूरो
मिथिलेश कुमार झा, अनुमंडल ब्यूरो
– अमिट लेख
वीरपुर, (सुपौल)। यह कारागृह नहीं ,बल्कि सुधार गृह है। इसमें आपको स्वयं में सुधार लाने हेतु रखा हुआ है, शिक्षा देने हेतु नहीं। आप इस कारागृह को संस्कार परिवर्तन का केंद्र बना लें। इसमें एक दूसरे से बदला लेने के बजाए स्वयं को बदलने का प्रयास करें। बदला लेने से समस्या ही बढ जाती है। यह उदगार माउंट आबू राजस्थान से आए प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय से आए हुए ब्रह्मकुमार भगवान भाई ने व्यक्त किए।

इन्होंने उपकारा (जेल) में बंद कैदियों को कर्म गति और व्यवहार शुद्धि विषय पर चर्चा करते हुए कहा कि कारागृह के इस एकांत स्थान पर बैठकर स्वयं को परिवर्तन करने के लिए सोचों कि मैं इस संसार में क्यों आया हूं? मेरे जीवन का उद्देश्य क्या हैं, मुझे परमात्मा ने किस उद्देश्य से यहां भेजा है ? मैं यहां आकर क्या कर रहा हूं ? ऐसी बातों का चिंतन करने से संस्कार और व्यवहार में परिवर्तन होगा। उन्होंने कहा कि यह कारागृह आपके जीवन को सुधार लाने हेतु तपोस्थल है। हम किसके बच्चे हैं? जिस परमात्मा के हम बच्चे हैं, वह तो शांति का सागर, दयालू, कृपालू, क्षमा का सागर है। हम स्वयं को भूलने से ऐसी गलतियां कर बैठते हैं। कर्म गति याद करते हुए इन्होंने कहा कि हम ऐसा कोई कर्म ना करें जिस कारण धर्मराज पूरी में हमें सिर झुकाना पडे, पछताना पडे, रोना पडे। स्वयं के अवगुण या बुराईयां हैं उसे दूर भगाना हैं, ईर्ष्या करना, लड़ना, झगड़ना, चोरी करना, लोभ, लालच, काम , क्रोध, अभिमान यह मनोविकार तो हमारे दुश्मन हैं । जिसके अधीन होने से हमारे मान , सम्मान को चोट पहुंचती हैं। जिन भूलो के कारण हम यहा आये है उस भूलो को या बुराईयां दूर करना है। तो हमारे अंदर की अपराधिक प्रवति में परिवर्तन आएगा। इन अवगुणों ने और बुराईयों ने हमें कंगाल बनाया इससे दूर रहना है। जीवन में नैतिक मूल्यों की धारणा करने की आवश्यकता है। जीवन में सद् गुण न होने के कारण ही समस्याएं पैदा होती है। उन्होंने कहा कि मनुष्य जीवन बड़ा अनमोल होता है। उसे व्यर्थ कर्म कर व्यर्थ ऐसा ही नहीं गंवाना चाहिए । मजबूरी को परीक्षा समझकर उसे धैर्यता और सहनशीलता से पार करना हैं , तो अनेक दु:खो और धोखे से बच सकते हैं । जीवन में परिवर्तन लाकर श्रेष्ठ चरित्रवान बनने का लक्ष्य रखना है। तब कारागार आपके लिए सुधारगृह साबित होगा। हमारे जीवन से काम ,क्रोध,लोभ ,मोह अहंकार, इर्ष्या, नफरत आदि बुराई को अपने जीवन से खदेड़कर हमें अपने आंतरिक बुराईयों को निकालना हैं । उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वजों ने यह देश हमारे लिए स्वतंत्र बनाकर खुशी , आनंद में रहने के लिए दिया है । इन्होंने यह भी कहा कि जो जैसा करता है वैसा फल पाता है। हमारे मन में पैदा होने वाले विचार कर्म से पहले आते हैं। उन्होंने बन्दियों को बताया कि बीती बात को भुला देना चाहिए तथा आगे की सोचनी चाहिए कि हे परमात्मा मेरे से कोई बुरा कार्य न हो। गलती करने वाले से माफ करने वाला बडा होता है। बदला लेने वाला दूसरों को दुख देने से पहले अपने आप को दुख देता है। स्थानीय ब्रह्माकुमारी राजयोग सेवाकेंद्र की संचालिका बीके देवी बहन ने बीके भगवान भाई का परिचय बताते हुए कहा कि 800 से अधिक कारागृह में कार्यक्रम करने के कारण इनका नाम इण्डियन बुक ऑफ रिकार्ड में दर्ज है। भगवान भाई की बताई बातों को अपने जीवन में प्रयोग करोगे तो अवश्य ही आप बुरी आदतों को छोड दोगे तथा अपने आप अच्छा सोचने लगेंगे और जेल से छुटने के बाद अच्छे नागरिक की तरह जीवन यापन करेंगे। उन्होंने कहा कि मनुष्य ने विषय वासनाओं की चादर ओढ़ी हुई है। मन की वासनाओ के कारण अपराध बढ़ते है । उन्होंने कहा कि सभी इंसान ईश्वर की संतान है। वही जेल अधीक्षक निरंजन पंडित ने अपने सम्बोधन में बन्दियों को बताया कि आप जैसा सोचोगे वैसा ही बन जाओगे। अत: हमें सदैव अच्छा सोचना चाहिए तथा बुरी आदत को छोड़ देना चाहिए। ऐसे कार्यक्रमों का मुख्य उद्देश आप सभी में कुछ मानसिक सकारात्मक परिवर्तन आये। जेलर विपिन कुमार सिंह ने कहा कि ब्रह्माकुमारी संस्था को ऐसे कार्यक्रमों के लिए धन्यवाद दिया और भविष्य में ऐसे कार्यक्रम करने हेतु इन्हे आगे के लिए निमन्त्रण भी दिया। अनिल उपाध्याय ने कहा आप सभी को क्षमा करो , सकारात्मक सोचो तो जल्दी छुट जायेगे। बी. के. धनश्याम भाई भी उपस्थित एफसी थे। कार्यक्रम के अंत में आपराध मुक्त बनने, मनोबल बढने, बुरी आदतों को छोड़ने और सस्कार परिवर्तन के लिए भगवान भाई ने कॉमेंट्री द्वारा मेडिटेशन राजयोग कराया।