अद्भुत और मनोहारी
प्रकृति प्रदत्त इस ह्रदयहारी वन परिक्षेत्र का उपहार मिला है चम्पारणवासियो को
बिहार सरकार के निरंतर प्रयास और वीटीआर प्रशासन की हर क्षण कोशिश से और आकर्षक बन रहा यहाँ का जंगल सफारी
जो भी सैलानी आये, उसे बरबस हीं भा जाता वाल्मीकि ब्याघ्र परियोजना
वाल्मीकि वसुधा परिवार ने भी वाल्मीकिनगर को संवारने में किया है योगदान
जर्नलिस्ट अमरेश
– अमिट लेख
वाल्मीकिनगर, (पश्चिम चम्पारण)। देश के शीर्ष ब्याघ्र परियोजना में शुमार वाल्मीकि टाइगर रिज़र्व प्रकृति की अनुपम छंटाओं को अपने गर्भ में सहेजे है। जंगल के आजू-बाजू बसर करनेवाले ग्रामीणों जिनके दैनिक जीविकोपार्जन का संसाधन कभी यह वन परिक्षेत्र हुआ करता था। ग्रामीणों की जंगल में आपा-धापी और उसी क्रम में यदा-कदा बाघों से आमना-सामना होना भी इस वन क्षेत्र को ब्याघ्र आश्रयणी का चोला पहनाने का आधार बना।
शायद यहीं कारण भी मुख्य रही की तब तत्कालीन शासन ने वर्ष 1978 में इस वन साम्राज्य को ब्याघ्र आश्रयणी के रूप में रेखांकित कर लिया। तीन दशक पूर्व तक इस वनक्षेत्र पर वन निगम का स्वामित्व था। जिस समय तक जंगल के आसपास बसे जन जीवन को रूटीन के अनुसार घरसँगहा की लकड़ीयां मुहैया कराई जाती थी। लेकिन, विभागीय पन्नों पर रेखांकित टाइगर रिज़र्व की कार्यवाही भी अंदर हीं अंदर कुलांचे भर रही थी।
एक दिन ऐसा भी आया नब्बे के दशक में बिहार राज्य वन निगम के अधीन इस जंगल साम्राज्य को ब्याघ्र परियोजना में तब्दील कर दिया गया, जो आमजनों की जानकारी में सन 1995 में अपने मूल अस्तित्व में आया। प्रारंभिक दिनों में घरसंगहा की सुविधा पर अचानक रोक लगा देने से जनता में हाय बवेला भी मचा। कुछ अरसे तक कमोंबेश वन विभाग के इस रवैये को जन-विरोधी मान लोग बाग महकमे को सहयोग करने के बजाय इस ओर से मुंह फुलाये बैठे थे।
जंगल में तिनका नहीं हिलने देने के दायित्व में जुटे तब के वन पदाधिकारियों के सामने आज का इस वन्य जीव अभ्यारण्य को विकसित करना एक चुनौती पूर्ण कार्य था। प्रारंभिक अवस्था में इस आश्रयणी का क्षेत्रफल लगभग 842 वर्ग किलोमीटर था जो धीरे-धीरे बढाकर आज लगभग 898.45 वर्ग किलोमीटर उल्लेखित है। बताते चले की इस टाइगर रिज़र्व के गर्भ में जहरीले सांप, बिच्छू, रंग बिरंगी तितलियों,मोर व अन्य पक्षी, अरना भैंसा, हिरणों की विभिन्न प्रजातियां (काले हिरण को छोड़), बन्दर, लंगूर, हायना, भालू, तेंदुआ,गेंडा, मगरमच्छ, जंगली हरहिया गाय, नील गाय सरीखे आश्रयणी के अस्तित्व से जुड़े बंगाल टाइगर मौजूद हैँ।
उल्लेखनीय है की वाल्मीकिनगर के आसपास वन परिधि में ख़तरनाक किंग कोबरा का बसेरा है जो अमूमन कभी-कभी आबादी वाले क्षेत्र का भी रुख करते रहते हैँ। वैसे जानकारों की मानें तो सन्तपुर से बसहवा टोला से लगे जंगलों में किंग कोबरा का अद्भुत साम्राज्य है। इस ब्याघ्र परियोजना की एक और प्रमुख विशेषता है की इसकी सीमा से लगे मित्र राष्ट्र नेपाल का चित्तवन नेशनल पार्क का जंगल प्राकृतिक तौर पर चोली और दामन का सम्बन्ध बनाये हुये है। लिहाजा, वन्य जीवो में विशेषकर बाघों का सीजनल प्रवास भी जारी रहता है।
ब्याघ्र परियोजना के दावों के अनुसार वर्तमान समय में अभी भी 44 बाघ आश्रयणी में मौजूद हैँ। वीटीआर निरंतर सरकारी पहल से निखरते जा रहा है। कोरोना काल के बाद से यहाँ जंगल सफारी पुनः प्रारम्भ कर दी गई है। आंकड़े बताते हैँ की अब विटीआर का दीदार करने विदेशों से पर्यटक भी वाल्मीकिनगर पधारने लगे हैँ। पावन सलीला नारायणी, तमसा और सोनहाँ नदियाँ आपस मे मिलकर यही पर त्रिवेणी संगम बनाती है। जहाँ सदियों से माघ मास के मौनी अमावस्या पर भारी मेला का आयोजन प्रतिवर्ष होता है।
विटीआर जिसे प्रकृति ने इत्मीनान से सजाया और संवारा है, तपोभूमि के नाम से भी प्रसिद्ध है। बताते चले अल्ला और उदल की पूज्यमान इसी जंगल में प्रसिद्ध माता नरदेवी का मंदिर स्थापित है, यही प्राचीन शिवालयों में शुमार जटाशंकर मंदिर, कौलेश्वर स्थान विटीआर के वाल्मीकिनगर परिधि से जुड़े हैँ तो जगत जननी सीता की शरण स्थली वाल्मीकि आश्रम (नेपाल) भी इस टाइगर रिज़र्व के वन क्षेत्र से जुडा हुआ है। जहां पहुँचने के लिए नेपाल के लोगों को भी सड़क मार्ग से भारतीय वन क्षेत्र से गुजरना पड़ता है।
इको पर्यटन के शुरू होने से विटीआर से जुड़े प्रमुख केंद्र वाल्मीकिनगर भी गुलज़ार होने लगा है। वन विभाग के पर्यटन केंद्र के अतिरिक्त यहाँ स्थानीय स्तर पर भी जंगल सफारी पर आनेवाले सैलानियों की सुख सुविधा से भरपूर कई एक होटल या रिसोर्ट निजी लोगों ने भी तैयार रखा है। जिसका लुत्फ़ भी सैलानी लेते नज़र आते हैँ। वैसे विटीआर प्रबंधन ने हर तबके को ध्यान में रखते हुये सैलानियों के ठहरने से लगायत खान-पान सुविधा सस्ते और आकर्षक दर पर मुहैया कराया है। बम्बू कॉटेज और ट्री हट इन संसाधनों में से एक है।
वह भी ह्रदयहारी वन परिधि से जुड़े क्षेत्रों में। वाल्मीकिनगर के प्रमुख स्थलों से जुड़े गोल चौक, छाता चौक आदि को नयनाभिराम देने में समाजसेवी विद्यादित्य सिन्हा का वाल्मीकि वसुधा कुटुंब ने भी एक अलग योगदान दिया है।
मिला जुलाकर आज वाल्मीकि टाइगर रिज़र्व देश के अन्य ब्याघ्र आश्रयणियों के मुकाबले सैलानियों को सस्ती और सुरक्षित जंगल सफारी का मौका देने के लिए तत्पर नज़र आती है जहाँ सैलानी आने के बाद विविध वन्य जीवों के दीदार के साथ-साथ प्रकृति प्रदत्त यहाँ के मनोहारी दृष्यों को देख यही रच बस जाने की परिकल्पना में खो जाते हैं जो आनेवाले दिनों में विटीआर के लिए आकर्षण के और अन्य मार्ग निश्चित हीं खोलेंगे।
(नोट : सभी फ़ाइल तस्वीरें विटीआर में मौजूद जैव विविधता का बोध कराते हैं।)