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सोशलिस्ट-कम्युनिस्ट एकता के प्रबल हिमायती थे, कर्पूरी जी : फरहान राजा

हमारे उप-संपादक कि कलम से :

कर्पूरी जी सचमुच जननायक थे। एक भविष्यद्रष्टा, सड़क हो या विधानसभा, सत्ता रहे या जाए, बिना फिक्र किए जनता का एक प्रतिबद्ध योद्धा, सामाजिक न्याय का दुर्घर्ष योद्धा थे

न्यूज़ डेस्क, जिला पश्चिम चम्पारण

– अमिट लेख

बेतिया, (मोहन सिंह)। कर्पूरी जी सचमुच जननायक थे। एक भविष्यद्रष्टा, सड़क हो या विधानसभा, सत्ता रहे या जाए, बिना फिक्र किए जनता का एक प्रतिबद्ध योद्धा, सामाजिक न्याय का दुर्घर्ष योद्धा थे।

फोटो : मोहन सिंह

उक्त बातों को पिपरा चौक पर भाकपा माले कार्यालय पर आयोजित कर्पूरी ठाकुर जयंती पर भाकपा माले नेता सह युवा संगठन आरवाईऐ जिला अध्यक्ष फरहान राजा ने कहीं। भारी संख्या में भाकपा माले कार्यकर्ताओं द्वारा श्री कर्पूरी ठाकुर के चित्र पर पुष्प अर्पित कर जयंती मनाई। उपस्थित मजदूरों किसानों महिलाओं को संबोधित करते हुए फरहान राजा ने कहा कि, साल 2024 बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर का जन्मशती वर्ष है। आज, जब देश गहरे संकट से गुजर रहा है और नए साल में राम मन्दिर के नाम पर भाजपा द्वारा उन्माद फैलाने की पूरी पटकथा रची जा चुकी है। भाकपा (माले) ने कर्पूरी जी के जन्म दिन 24 जनवरी से महात्मा गांधी के शहादत दिवस 30 जनवरी तक, बिहार में ‘संविधान बचाओ, लोकतंत्र बचाओ भाजपा हटाओ, देश बचाओ’ पदयात्रा करने का निर्णय किया है। ऐसे में सोशलिस्ट व कम्युनिस्ट एकता के प्रबल हिमायती रहे कर्पूरी जी के बहुआयामी पहलुओं पर एक नजर डालना सामयिक होगा। आगे कहा कि भाषा, शिक्षा, आरक्षण आदि क्षेत्रों में कर्पूरी जी के किए गए कार्यों से हर कोई वाकिफ है। (गरीबों के बच्चों लिए 10 वां तक अनिवार्य व निशुल्क शिक्षा, बिहार में पहली बार पिछडों के लिए 27℅ आरक्षण) इसने समाज के कमजोर वर्गों को सामाजिक व आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। मुख्यमंत्री बनने के बाद गांधी मैदान में उन्होंने तकरीबन 10-11 हजार इंजीनियरों को नियुक्ति पत्र देकर रोजगार के क्षेत्र में एक उल्लेखनीय कदम उठाया था। आरक्षण को सामाजिक दिशा में एक हथियार मानते प्रतिगामी उन्हें बार-बार शिक्षा व कर्पूरी जी न्याय को महत्त्वपूर्ण थे। इसलिए दबंग तबकों का हमला झेलना पड़ा और उन्होंने इसे बखूबी झेला, अपनी सरकार गंवाई लेकिन अपने पथ पर अडिग रहे। उनकी नीतियों व कार्यक्रमों से बिहार में पिछड़ों, अतिपिछिड़ों और दलितों के साथ-साथ अगड़ी जातियों के गरीब तबके का एक मजबूत संश्रय स्थापित होना शुरू हुआ था। यह वह दिशा थी जिससे बिहार की तस्वीर बदली जा सकती थी। दुःखद रहा कि वह प्रक्रिया जारी नहीं रह सकी।

छाया : अमिट लेख

कर्पूरी जी सचमुच जननायक थे। एक भविष्यद्रष्टा, सड़क हो या विधानसभा, सत्ता रहे या जाए, बिना फिक्र किए जनता का एक प्रतिबद्ध योद्धा, सामाजिक न्याय का दुर्घर्ष योद्धा, लेकिन, कर्पूरी जी इतना भर नहीं थे। वे, बखूबी समझते थे कि घोर अन्याय पर आधारित समाज में वंचित तबके को आखिर कितना ही न्याय मिल पाए‌गा। उनकी जीवनी पढ़िए, भाषणों को पढ़िए, अथवा उनके द्वारा किए गए कार्यों को देखिए, उनकी वैचारिकता में सामाजिक न्याय व सामाजिक बदलाव की अंतर्गुचित धारा दिखेगी, जिसपर अब तक कम ही नजर गई है, कर्पूरी जी को जब आज हम उनके शताब्दी वर्ष पर याद कर रहे हैं, तो उनकी वैचारिकता के इस विशेष पहलू को केंद्र में लाना होगा। देश आज जिन चुनौतियों का सामना कर रहा है, यह वैचारिकता उससे निबटने में मददगार हो सकती है। आगे कहा कि आज जब देश भाजपा-आरएसएस के फासीवादी चंगुल में है, लोकतंत्र संविधान पर हमले हो रहे हैं, विपक्षरहित लोकतंत्र की बात हो रही है और देश को तथाकथित हिंदू राष्ट्र में बदल देने का उन्मादी अभियान चलाया जा रहा है। ऐसे में लोगों से अपील करते हुए कहा कि कर्पूरी जी की राजनीति के मूल उसूलों को आत्मसात करते हुए देश को बचाने के लिए एक व्यापक एकता के निर्माण में हम सब अपना-अपना योगदान दें। इनके अलावा आरिफ़ खां, ठाकुर पटेल, ठाकुर राम ठग राम, अमेरिका राम, प्रकाश माझी, जंगाली माझी, रामचंद्र यादव देवकी राम, सुकई राम आदि ने भी इस अवसर पर अपने अपने विचार रखें।

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