विश्व में लगभग 500 मिलियन से भी अधिक लोगों द्वारा हिन्दी भाषा का प्रयोग किया जाता है और यह सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में शामिल है
न्यूज़ डेस्क, जिला ब्यूरो
दिवाकर पाण्डेय
– अमिट लेख
मोतिहारी/चकिया। विश्व में लगभग 500 मिलियन से भी अधिक लोगों द्वारा हिन्दी भाषा का प्रयोग किया जाता है और यह सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में शामिल है। सिर्फ भारत व पाकिस्तान ही नहीं, इनके अलावा मॉरीशस, फिजी, गुयाना, त्रिनिदाद, टोबागो और नेपाल में भी हिन्दी भाषा का ज्यादा प्रयोग किया जाता है। उक्त बातें चकिया प्रखण्ड परसौनी खेम स्थित महर्षि गौतम ज्योतिष परामर्श एवं अनुसंधान केन्द्र चम्पारण ‘काशी’ द्वारा संचालित वैदिक गुरुकुलम् में हिन्दी दिवस पर आचार्य अभिषेक कुमार दूबे ने कहीं । साथ ही उन्होंने कहा की हिन्दी भाषा में लेखनी ध्वनिप्रधान होता है, जो अंग्रेजी से बिल्कुल अलग है। इस भाषा में जो लिखा जाता है वही उच्चारण किया जाता है, जबकि अंग्रेजी में ऐसा नहीं होता। अंग्रेजी की रोमन लिपि में जहां कुल 26 वर्ण हैं, वहीं हिन्दी की देवनागरी लिपि में उससे दोगुने 52 वर्ण हैं। हिन्दी भाषा के शब्दों को टाइप करने वाला पहला टाइपराइटर बाजार में 1930 के दशक में आ गया था। वर्ष 1918 में महात्मा गांधी के दोस्त “नोनो” ने इसे जनमानस की भाषा कहा था और इसे देश की राष्ट्रभाषा भी बनाने को कहा था। लेकिन आजादी के बाद ऐसा कुछ नहीं हो सका। सत्ता में आसीन लोगों और जाति-भाषा के नाम पर राजनीति करने वालों ने कभी हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनने नहीं दिया। अंग्रेजी भाषा के बढ़ते चलन और हिंदी की अनदेखी को रोकने के लिए हर साल 14 सितंबर को देशभर में हिंदी दिवस मनाया जाता है। आजादी मिलने के दो साल बाद 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में एक मत से हिन्दी को राजभाषा घोषित किया गया था और इसके बाद से हर साल 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू होने के साथ साथ राजभाषा नीति भी लागू हुई। संविधान के अनुच्छेद 343 (1) के तहत यह स्पष्ट किया गया है कि भारत की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी है । संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप है । हिन्दी के अतिरिक्त अंग्रेजी भाषा का प्रयोग भी सरकारी कामकाज में किया जा सकता है। अनुच्छेद 343 (2) के अंतर्गत यह भी व्यवस्था की गई है कि संविधान के लागू होने के समय से 15 वर्ष की अवधि तक, अर्थात वर्ष 1965 तक संघ के सभी सरकारी कार्यों के लिए पहले की भांति अंग्रेज़ी भाषा का प्रयोग होता रहेगा। यह व्यवस्था इसलिए की गई थी कि इस बीच हिन्दी न जानने वाले हिन्दी सीख जायेंगे और हिन्दी भाषा को प्रशासनिक कार्यों के लिए सभी प्रकार से सक्षम बनाया जा सकेगा। अनुच्छेद 344 में यह कहा गया कि संविधान प्रारंभ होने के 5 वर्षों के बाद और फिर उसके 10 वर्ष बाद राष्ट्रपति एक आयोग बनाएँगे, जो अन्य बातों के साथ साथ संघ के सरकारी कामकाज में हिन्दी भाषा के उत्तरोत्तर प्रयोग के बारे में और संघ के राजकीय प्रयोजनों में से सब या किसी के लिए अंग्रेज़ी भाषा के प्रयोग पर रोक लगाए जाने के बारे में राष्ट्रपति को सिफारिश करेगा। आयोग की सिफारिशों पर विचार करने के लिए इस अनुच्छेद के खंड 4 के अनुसार 30 संसद सदस्यों की एक समिति के गठन की भी व्यवस्था की गई। परन्तु अभी तक यह लिखित रुप ही रह गया लेकिन लागू नहीं हो पाया। अभी भी सचेत होने का समय है हमें ज्यादा से ज्यादा प्रयोग में हिन्दी को लाना चाहिए जैसा कि वर्तमान समय सोशल मीडिया का जल रहा है इस समय में हमें फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम इत्यादि पर ज्यादा से ज्यादा हिन्दी का प्रयोग करना चाहिए। जिससे आने वाली पीढ़ी को हिन्दी बोलने में गर्व महसूस हो। अब समय आ गया है भारत सरकार को चाहिए कि अध्यादेश के साथ ही हिन्दी को भारत का राष्ट्र भाषा घोषित किया जाए।