संस्मरण : जब पप्पू पढता था
(एक औसत विद्यार्थी का मनोवैज्ञानिक अध्ययन)
सुनील कुमार यादव
– अमिट लेख
पप्पू का उस दिन बोर्ड परीक्षा का परिणाम निकलने वाला था। वह सुबह से ही इंटरनेट खोलकर बैठा था। परीक्षा परिणाम आते ही उसने सर्च बॉक्स में अपना अनुक्रमांक डरते-डरते अंकित किया। पप्पू उत्तीर्ण तो हो गया था, लेकिन उसके प्राप्तांक बहुत कम थे। उसके माता पिता उसके कम प्राप्तांक से खुश नहीं थे। कम अंक प्राप्त करना उसके लिए वर्षों से पुरानी परंपरा बन गई थी। हर वर्ष परीक्षा कक्ष में बैठकर प्रश्नों के उत्तर लिखते समय उसे पढ़ाई की वे घंटियाँ एवं दिन याद आ जाते थे, जिन्हें उसने लड़कपन या लापरवाही में खो दिया था। पप्पू इसके लिए किसे दोष दे? अपने आप को, अपने दोस्तों को, उस प्रतिकूल माहौल को या फिर मोबाइल के यूट्यूब और वीडियो को जो उसे पढ़ाई लिखाई से दूर ले जाते थे। वह स्वयं नहीं जानता था किंतु अपने आप को कोसता जरूर था कि उसने जो समय बर्बाद कर दिया, अब, वह लौट के नहीं आ सकता। परीक्षा निकट आने पर प्रतिवर्ष हनुमान जी से मनुहार करता कि इस बार किसी तरह से पास हो जाऊं। वह प्रण करता कि अगली कक्षा में पहले दिन से ही नियमित रूप से पढ़ेगा, थोड़ा भी समय बर्बाद नहीं करेगा। लेकिन उसका यह प्रण किसी भी वर्ष पूरा नहीं होता। नए सत्र में नई किताबें अपने पिताजी से खरीदवाने में तो वह हर वर्ष अत्यंत तत्पर रहता, लेकिन पढ़ने के मामले में उसकी तत्परता अगले ही दिन से कम होने लगती और परीक्षा आते आते तो वह भगवान भरोसे हो जाता था। पप्पू जानता था कि समय पर किसी का नियंत्रण नहीं हो सकता। समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता और न ही समय की गति में बाधा डाली जा सकती है। फिर भी वह समय का सदुपयोग क्यों नहीं किया? पढ़ने में कमजोर अधिकांश विद्यार्थी भी उसकी तरह सोचते होंगे जो अपनी भूल जानते हुए भी सुधारने का प्रयत्न नहीं करते। यह पप्पू की बुद्धिहीनता थी या आलस्य इसी उधेड़बुन में वह कभी कभी खो जाता था। हाँ तो परीक्षा कक्ष में उत्तर लिखते समय पप्पू के दिमाग में लाख सिर झकझोरने और माथापच्ची करने के बाद भी कुछ भी याद नहीं आता था, तो पूरे सत्र की पढ़ाई की कक्षाओं के दृश्य क्रमशः उसके दिमाग में आने लगते थे। जब पप्पू पढ़ाई से वैसे ही दूर भागता था जैसे कुत्तों से बिल्ली या बिल्ली से चूहा। जब वह मोबाइल छिपाकर विद्यालय लाता था और पानी पीने के बहाने कक्षाएं छोड़कर किसी ऐसी जगह पर अपने दोस्तों के साथ मोबाइल देखता था जहाँ किसी शिक्षक की नजर न पहुंचे। वह इसी में गौरवान्वित महसूस करता था। उसे वे दिन याद आने लगते थे, जब वह जाड़े में मैदान में धूप में बैठकर शिक्षकों की नकल उतारता था और अपने मित्रों का मनोरंजन कर उनकी वाहवाही लूटता था। पप्पू ने तो सभी शिक्षकों का बकायदा उपनाम भी रखा था प्रधानाचार्य जी पर तो वह टिप्पणी करता था कि अपने धूप में बाहर घूमते है और हम लोगों को छड़ी दिखाकर कमरे में बैठने के लिए कहते हैं। परीक्षा कक्ष में उसे सब कुछ याद आता था सिवाय प्रश्नों के उत्तर के। उत्तर उसके दिमाग से ऐसे बिलुप्त हो जाते थे जैसे गधे के सिर से सींग। ऐसी दुखद स्थिति में उसे शिक्षकों के चेहरे याद आते थे किंतु उनके चेहरे पर तो प्रश्नों का उत्तर लिखा नहीं होता था; उत्तर तो लिखा होता था श्यामपट पर और उनकी आवाज में, जिसे देखना और सुनना उसे पसंद नहीं था। वह सोचता कि कितना अच्छा होता यदि सर परीक्षा कक्ष में भी पूछते कि सब कुछ समझ में आ रहा है न? और वह उनसे तपाक से कुछ प्रश्नों का उत्तर बड़े ही संक्षिप्त रूप में समझ लेता।
हाँ, तो जब लाख सोचने और सिर खुजलाने पर भी पप्पू को प्रश्न का उत्तर नहीं सूझता था तो उसे गुस्सा आता था। खासकर जयशंकर प्रसाद, सूरदास या कालिदास पर; जिनके निबंध, दोहे या नाटक से उदधरण प्रश्न-पत्र में आए होते थे। परीक्षा देकर बाहर निकलने पर तो पप्पू यहाँ तक कहता था कि ये सूरदास, तुलसीदास लिखकर स्वर्ग चले गए और हम लोगो को पढ़ना पड़ता है। कालिदास तो शायद शुरू में मूर्ख थे न? मूर्ख ही रहे होते, विद्वान बनकर इतनी कठिन और दुरूह भाषा में संस्कृत नाटक लिखने की क्या जरूरत थी? हम लोगो को इसका अर्थ याद करने में नानी याद आ जा रही है। उनका क्या। इतिहास विषय की परीक्षा देकर बाहर निकलने पर पप्पू अपने दोस्तों से कहता कि यार हम लोग प्राचीन काल या मध्यकाल में पैदा हुए होते तो इतना ज्यादा याद नहीं करना पड़ता। आज 21 वीं सदी पहुंचते पहुंचते अनेक राजाओं और वंशों ने जन्म ले लिया। इससे हम लोगों के इतिहास विषय का पाठ्यक्रम और अधिक बढ़ गया। मेरे प्राप्तांक कम होते हैं, इसका मतलब ये नहीं कि मैं बुद्धू हूँ। पाठ्यक्रम बढ़ गया है, दिन प्रतिदिन सामान्य ज्ञान के प्रश्न बढ़ते जा रहे हैं तो इसमें मेरा क्या दोष है लेकिन पढ़ने वाले बच्चों के अधिक अंक देखकर वह मन ममोंस कर रह जाता था। उसकी अंतरात्मा उसे झकझोर देती थी कि वह गलत सोच रहा है और गलत तर्क दे रहा है। पप्पू पिछले सात आठ वर्षों से जब से उसने होश सँभाला हर वर्ष परीक्षा के दौरान यही प्रण करता कि अब वह कभी समय बर्बाद नहीं किया करेगा। रोज़ अच्छे से पढ़ेगा लेकिन अंत में वही होता जिसका ऊपर वर्णन हुआ है। इस लेख को पढकर पप्पू ने इसे अपने पढ़ाई के समय सारणी के साथ चिपका दिया ताकि उसे रोज़ याद आ जाए कि उसने अपना अमूल्य समय बाइक रेस, क्रिकेट, आलस्य एवं मोबाइल की फालतू वीडियोज् को भेंट चढ़ा दिया। उसके बाद पप्पू ने अपनी माँ से वादा किया- अगली कक्षा में अच्छे अंक लाने का, कल से अच्छे से अवश्य पढने का। लेकिन बस उस दिन वह जा रहा था अपने दोस्तों के साथ बाइक लेकर क्रिकेट मैच खेलने।
प्रस्तुति :
सुनील कुमार यादव MG Inter College Siswa Bazar Mahrajganj मो. 8924941660