



महराजगंज जनपद से ब्यूरो रिपोर्ट :
थाना निचलौल क्षेत्र में दिखा अकीदतमंदों का जनसैलाब
ताजियों के साथ उठे मातमी जुलूस, चबूतरों पर शायरी और मर्सियों ने किया माहौल ग़मगीन
न्यूज़ डेस्क, जनपद महराजगंज
तैयब अली चिश्ती
– अमिट लेख
महराजगंज, (ए.एल.न्यूज़)। जनपद के थाना निचलौल क्षेत्र अंतर्गत मिश्रौलिया बहुआर, झूलनीपुर, गोसाईपुर, शीतलापुर,औरहवा सहित सभी जगह कड़ी सुरक्षा व्यवस्था और शांतिपूर्ण माहौल के बीच मोहर्रम का जुलूस रविवार को सकुशल संपन्न हुआ। इमाम हुसैन की शहादत की याद में निकाले गए इस मातमी जुलूस में अकीदतमंदों का जनसैलाब उमड़ पड़ा। सुबह से ही गांव नगर सहर के गलियों में ताजिया लेकर चल रहे लोगों की टोलियां नजर आईं। श्रद्धालुओं ने अपने-अपने मोहल्लों से ताजिए निकालते हुए मुख्य मार्गों पर पहुंच कर जुलूस में शामिल हुए। इस दौरान सैकड़ों की संख्या में अकीदतमंदों ने मातम करते हुए “या हुसैन” की सदाओं से फिजा को गमगीन बना दिया। जुलूस मार्ग पर जगह-जगह बने चबूतरों पर स्थानीय शायरों ने मर्सिए और नौहे पढ़े, जिससे माहौल पूरी तरह इमाम हुसैन की कुर्बानी की याद में डूबा नजर आया। शायरी और अजादारी की ऐसी तस्वीरों ने हर किसी को भावुक कर दिया। बहुआर पुलिस चौकी प्रभारी अपने तमाम पुलिस एवं पीएसी के जवानों के साथ सुरक्षा व्यवस्था बेहद चुस्त-दुरुस्त रही। चप्पे-चप्पे पर पुलिस बल की तैनाती की गई थी। थाना प्रभारी लगातार फोर्स के साथ निगरानी करते रहे। साथ ही ड्रोन कैमरों से भी निगरानी की गई ताकि किसी भी असामाजिक गतिविधि पर तत्काल कार्रवाई की जा सके। स्थानीय स्वयंसेवकों और युवाओं ने भी प्रशासन को सहयोग करते हुए व्यवस्था को बनाए रखा। पानी, दवा और अन्य जरूरी इंतज़ामात भी जगह-जगह मुहैया कराए गए। अंत में ताजियों को कर्बला पहुंचाकर सुपुर्द-ए-खाक किया गया। प्रशासन, स्थानीय नागरिकों और मजहबी संगठनों की सजगता से यह जुलूस पूरी तरह शांतिपूर्ण और श्रद्धा के साथ संपन्न हुआ।
क्या है मोहर्रम का महीना :
मोहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना होता है और यह इस्लाम धर्म के चार पवित्र महीनों में से एक माना जाता है। लेकिन मोहर्रम का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि इसी महीने की 10वीं तारीख (जिसे ‘यौमे आशूरा’ कहा जाता है) को इस्लाम के तीसरे खलीफा हज़रत अली के बेटे और पैग़म्बर मोहम्मद साहब के नवासे हज़रत इमाम हुसैन (रज़ि.) को कर्बला के मैदान में शहीद कर दिया गया था।
क्यों मनाया जाता है मोहर्रम :
मोहर्रम मनाने का मुख्य उद्देश्य इमाम हुसैन और उनके साथियों की कुर्बानी को याद करना है, जिन्होंने सत्य, इंसाफ़ और धर्म की रक्षा के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी। इमाम हुसैन ने यज़ीद जैसे ज़ालिम शासक के खिलाफ खड़े होकर यह संदेश दिया कि सत्य के लिए लड़ना ज़रूरी है, भले ही बलिदान देना पड़े। मोहर्रम का महीना रोज़े, इबादत और आत्मनिरीक्षण का समय होता है। कई मुसलमान इस महीने में रोज़ा रखते हैं, विशेषकर आशूरा के दिन। शिया मुस्लिम समुदाय इमाम हुसैन की शहादत की याद में मातम करते हैं, जुलूस निकालते हैं, ताजिये बनाते हैं और कर्बला की घटना का स्मरण करते हैं।सुन्नी मुस्लिम भी इस दिन रोज़ा रखते हैं और इबादत करते हैं, लेकिन जुलूस या मातम का आयोजन कम करते हैं। मोहर्रम सिर्फ शोक का महीना नहीं है, बल्कि यह न्याय, सच्चाई और धर्म के लिए संघर्ष का प्रतीक है। यह हमें यह सिखाता है कि अत्याचार के सामने झुकना नहीं चाहिए, चाहे उसकी कितनी भी बड़ी कीमत क्यों न चुकानी पड़े।